Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 306
________________ ___ २४१ श्री गुणानुरागकुलकम् . संसार से सब भोग और विभव नष्ट होने वाले हैं, इन्हीं भोग और विभव की आशाओं से जन्म मरण के चक्र में घूमना पड़ता है। आयुष्य, युवावस्था और चंचल लक्ष्मी देखते-देखते विलय हो जाती है, संसार में जो मिली हुई सामग्री है वह सब.दुःखद है और सब चेष्टाएँ व्यर्थ हैं; ऐसा समझकर अपने मन को शुभयोगों के तरफ लगाओ और भलाई, गुणसंग्रह और हितकारक कार्यों में प्रयत्न करना सीखो। काम, क्रोध आदि शत्रुओं से अलग होकर आत्मीय प्रेम में मन लगाओ जिससे अविनाशी यश और सुख मिलेगा यह मनुष्य जीवन किसी बड़े भारी पुण्ययोग से मिला है, अतएव जो कुछ प्रशस्य शुभकार्य कर लोगे वही साथ रहेगा। वहयब्धिन्देन्दु मिते शुभेऽब्दे, पौषे रवो सिन्धुतिथौ यतीन्द्रैः।। गुणानुरागस्य विवेचनोऽयं, भूयात् कृतः साधुजनस्य प्रीत्ये ॥१॥

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