Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 308
________________ मालवांचल के दैदिप्यमान नक्षत्र एवं श्री मोहनखेड़ा तीर्थ | বিচাষ ক সমুষ হনম ম হই হক এই নিবাহী ___ श्री मांगीलालजी सा. छाजेड़, एक परिचय . वर्षा ऋतु समाप्त होकर हेमन्त अपने यौवन में पृथ्वी पर खुशनुमा वातावरण चारों ओर से मानव मात्र को आल्हादित कर रही थी, देश का कृषक पूर्णानन्द मना रहा था। वर्षा ऋतु ने धन धान्य से सभी को सम्पन्न कर दिया था। विक्रम सं. १९७४ मागसर सुदि ३ सोमवार दिनांक १७ दिसंबर, १९१७ को राजगढ़ जिला धार में चारों ओर आनन्द उल्हासमय वातावरण चल रहा था। प्रातःकाल मार्तण्ड अपनी सहस्त्रों किरणों से पृथ्वी पर प्रकाशमान कर रहा था। ऐसे में एक ओर से बैंड-बाजों की सुमधुर ध्वनि सुनी जा रही थी। सहसा एक ने दूसरे से प्रश्न किया, आज क्या आनन्दोत्सव हो रहा है? बैंड-बाजे बज रहे हैं, दूसरे ने जवाब दिया तुझे नहीं मालूम आज प्रातःकाल में जो बैंड बज रहा था, इसलिए कि अपने नगर में श्रेष्ठिवर्य श्री केसरीमलजी सा. के घर पुत्र रत्न का जन्म हुआ है। इस आनन्द में बैंड बाजे बज रहे थे। क्योंकि यह पुत्र आज तीन भाईयों में प्रथम वरिष्ठ पुत्र होने से इतना अधिक उत्साह है। सूति कर्म के दिन व्यतीत होने पर परिवारजनों को एकत्रित कर नगर के ज्योतिषी महाराज को बुलाकर बालक के नामकरण विधि का कार्यक्रम रखा। ज्योतिषी महाराज ने बालक के जन्म लग्न के ग्रहों को देखते हुए कहा यह बालक गौत्र, धर्म व समाज के लिए कई प्रकार के धर्म कार्य कर पाएगा

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