Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 303
________________ २३८ श्री गुणानुरागकुलकम् ३२. नम्रता और क्षमा के विचारों से मनुष्य नम्र और दायवानबन जाता है, जिससे उसकी बाह्यावस्थाएँ उसकी रक्षक और पोषक बन जाती है। प्रेम और निःस्वार्थता के विचारों से मनुष्य दूसरों के लिए अपने को विस्मरण कर देता है जिससे उसकी बाह्यावस्थाएं ऋद्धि और सच्चे धन की उत्पादक हो जाती है। . ३३. प्रकृति प्रत्येक मनुष्य को उसकी उन इच्छाओं की पूर्ति में सहायता देती है, जिसको वह अपने अन्तःकरण में सबसे अधिक उत्साहित करता है और ऐसे अवसर मिलते हैं जो शीघ्र ही उसके भले, या बुरे विचारों को संसार में सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। .. ३४. जब मनुष्य धन को चाहता है तो उसको कितना आत्म संयम और परीश्रम करना पड़ता है? तो विचारना चाहिए कि उस मनुष्य को कितना अधिक आत्मसंयम करना पड़ेगा जो दृढ़, शान्त और ज्ञानमय जीवन की इच्छा रखता है। ३५. विचार जो निर्भयता के साथ उद्देश्य से जोड़े जाते हैं, बड़ी भारी उत्पादक शक्ति रखते हैं। वह मनुष्य जो इस बात को जानता है शीघ्र ही बलवान, श्रेष्ठ और यशस्वी हो जाता है। वह फिर चचंल विचार वाला, अस्थिर आवेश और मिथ्यासंकल्प विकल्पों का पुतला नहीं रहता, वह मनुष्य जो इस भांति उद्देश्य को पकड़ लेता है अपनी आत्मिक शक्तियों का जानने वाला स्वामी बन जाता है और उन शक्तियों को अन्य कामों में भी ला सकता है। .. ३६. कुसंप. के बीज बोने वाले को आखिर पश्चाताप का समय आता है अतएव क्षुद्रातिक्षुद्र जन्तु के साथ भी वैर न रखना चाहिए क्योंकि किसी समय क्षुद्रजन्तु भी महान पुरुषों के विनाश का कारण बन जाता है।

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