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श्री गुणानुरागकुलकम् योग्यता का पात्र बनेगा और सांसारिक तथा धार्मिक कार्यों में अग्रगण्य समझा जाएगा। महर्षियों ने जन सुधार के निमित्त जो जो आज्ञाएँ दी हैं, और उत्तम उत्तम उपाय बतलायें हैं उनको श्रद्धापूर्वक पालन करने से स्गुणों की प्राप्ती होती है और उभय लोक में अखण्ड यशः प्रताप फैलता है। छः प्रकार के पुरुष -
ग्रन्धकार महर्षियों ने सर्वोत्तमोत्तम १, उत्तमोत्तम २, उत्तम ३, और मध्यम ४, इन चार भेदवालों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करने के लिए उपदेश दिया है। क्योंकि ये चारों भेदवाले पुरुष धर्मात्मा और धर्मानुगारी होते हैं, इससे इनकी प्रशंसा करने से मनुष्य सद्गुणी बनता है। दुनिया में 'सर्वोत्तमोत्तम' पुरुषों में सब दोषों से रहित और अनेक प्रभावशाली अतिशयान्वित, श्रीतीर्थङ्कर भगवान तथा उत्तमोत्तम' कोटी में सामान्य केवली भगवन्त दाखिल हैं, 'उत्तम' कोटी में पंचमहाव्रतधारी, अखंड ब्रह्मचर्य व्रतपालक, मुनि महाराज और देशविरतिश्रावक महानुभाव दाखिल हो सकते हैं; और 'मध्यम' कोटी में सम्यग्दृष्टि; और मार्गानुसारी सत्पुरुष, समझे जा सकते हैं। इन महानुभावों को सद्गुणों के प्रभाव से ही उत्तमता प्राप्त हुई है। इसलिए इन्हों की प्रशंसा करना, वास्तव में अपनी ही उन्नति के निमित्त है। अत एव सत्पुरुषों की निरन्तर प्रशंसा करते रहना चाहिए; क्योंकि उत्तमोत्तमगुण प्राप्त करने का यही मुख्य साधन है।
जो 'अधम' तथा 'अधमाधम' जीव हैं, वे गुरुकर्मी होने से प्रशंसा के लायक नहीं हैं, क्योंकि उनमें जितने दोष हैं, वे प्रायः निन्दा करने योग्य ही हैं। तथापि -