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श्री गुणानुरागकुलकम् "धर्मः श्रुतोऽपिदृष्टो वा, कृतो वा कारितोऽपि वा। अनुमोदितोऽपि राजेन्द्र ! पूनात्याऽऽसप्तमं कुलम् ॥१॥"
तात्पर्य - हे राजेन्द्र ! सुना हुआ, देखा हुआ, किया हुआ, कराया हुआ और अनुमोदन किया हुआ धर्म सात कुल को पवित्र बनाता है। धर्म, धन, काम और मुक्ति का देने वाला है, ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो धर्म के प्रभाव से प्राप्त न हो सके। अतएव तीनों वर्ग में धर्म अग्रगण्य (मुख्य) समझा जाता है।
. यहाँ पर यह संशय होना संभव है कि बारंबार त्रिवर्ग का ही नाम आता है, किन्तु चौथा वर्ग मोक्ष या निर्वाण का तो नाम ही नहीं लिया जाता, तो क्या आप मोक्ष को नहीं मानते ? - इसके समाधान में समझना चाहिये कि - मोक्ष निर्वाण अथवा मुक्ति आदि नाम से प्रख्यात चतुर्थ वर्ग के साधक मुनिवर है और यहाँ प्रस्तुत विषय तो गृहस्थों को धर्म की योग्यता प्राप्त
करने का है, इसी से यहाँ पर मोक्ष का नाम दृष्टिपथ नहीं होता। • जैन. सिद्धांतों में जितनी क्रिया प्रतिपादन की गई है, वह सब मोक्ष
साधक है, स्वर्गादिक तो उसके अवान्तर फल हैं। जैसे कोई मनुष्य किसी शहर का उद्देश्य करके रवाना हुआ, परन्तु वह इच्छित शहर में नहीं पहुंचने से मार्ग स्थित गाँव में रह गया। इसी प्रकार मोक्षसाधक मनुष्य भी मार्गभूत स्वर्गादि गतियों में जाता है। जिन लोगों के सिद्धांत में मोक्ष साधक नहीं है, उनको अवश्य नास्तिक समझना चाहिये। मोक्ष का कारण सम्यक् - ज्ञान, दर्शन और चरित्र है, इनको प्राप्त करने के लिये प्रथम योग्यता प्राप्त करने की आवश्यकता है। योग्यता का कारण भूत, धर्म, अर्थ और काम रूप