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श्री गुणानुरागकुलकम्
"शरीर के रोग दूर करने के लिए, आनन्दप्रद और सुखमय "विचार से अधिक लाभकारी औषधि कोई नहीं है। शोक और क्लेश को हटाने के लिए नेक विचारों से अधिक प्रभावशाली कोई नहीं है। शत्रुता और द्वेष-द्रोह के विचारों में निरन्तर रहने से मनुष्य अपने को स्वरचित कारागार में बन्दी कर देता है, परन्तु जो मनुष्य जगत को भला देखता है, तथा जगत में सभी से प्रसन्न है और धैर्य से सबों में भले गुणों को देखने का यत्न करता है, वह निःसन्देह अपने लिए स्वर्ग के पट खोलता है। जो प्रत्येक जन्तु से प्रेम और शान्तभाव के साथ व्यवहार करता है, उसको निःसन्देह प्रेम और शान्ति का कोश मिलेगा।" . ____ "दूसरों के साथ तुम वैसा व्यवहार करो जैसा अपने लिए अच्छा समझो। अर्थात् अगर तुम किसी से मीठी बात सुनना चाहते हो तो तुम मीठी बात बोलो, और किसी की गाली नहीं सुनना चाहते हो तो किसी को गाली मत दो।" . अतएव प्रत्येक व्यक्ति में जो गुण हों उन्हीं का अनुकरण और बहुमान करना चाहिए। "गुण के अनुकरण की अपेक्षा दोष का अनुकरण सुगम है, किन्तु दोष के अनुकरण में हानियाँ कितनी हैं? इसे भी सोचना चाहिए। दशदोषों का अनुकरण न कर एक गुण का अनुकरण करना अच्छा है, जैसे दोष में अनेक बुराइयाँ भरी हैं वैसे ही गुण में अनेक लाभ हैं।
चाहे जैन हो या जैनेतर, यदि वह सुशील, सहनशील, सत्यवक्ता और परोपकार आदि गुणों से युक्त हो तो उसको बहुमान देने में किसी प्रकार की दोषापत्ति नहीं है। यद्यपि जो लोग व्यभिचारी, हिंसक और परापवादी हैं उनका बहुमान करना ठीक नहीं हैं, तथापि निन्दा तो उनकी भी करनी अच्छी नहीं है।