Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 265
________________ २०० श्री गुणानुरागकुलकम् विषय की पुष्टि के लिये यहाँ एक दृष्टांत लिखा जाता है, उसे वाचक वर्ग मनन करें। कुसुमपुर नगर के मध्य में किसी श्रीमंत सेठ के घर में दो साधु उतरे। एक मेड़ी पर और एक नीचे ठहरा। ऊपर वाला साधु पंच महाव्रतधारी शुद्धाहारी, पादचारी, सचितपरिहारी, एकलविहारी आदि गुणगण विभूषित था, परन्तु केवल लोकैषणा मग्न था। नीचे उतरा हुआ साधु था तो शिथिलाचारी, लेकिन गुणप्रेमी, निर्माग्नी. निरभिमानी और सरल स्वभावी था। ____भक्त लोग दोनों साधु को वन्दन करने के लिये आये। प्रथम नीचे उतरे साधु को वन्दन करके फिर मेड़ी पर गये। उपरिस्थित साधु को यह बात मालूम हुई कि ये नीचे वन्दन करके यहाँ आये हैं, अतएव उसने भक्त लोगों से कहा कि - पार्श्वस्थों को वन्दन करने से महापाप लगता है तथा भगवान् की आज्ञा का भंग होता है और संसार वृद्धि होती है। नीचे जो साधु ठहरा हुआ है, उसमें चारित्रगुण शिथिल हैं, उसके आचरण प्रशंसा के लायक नहीं है, इसलिये ऐसों के वन्दन से संसार परिभ्रमण कम नहीं हो सकता। भक्त लोग हाँजी-हाँजी कर नीचे उतरे और सब वृत्तान्तं नीचे के साधु से कह दिया। ___ भक्त लोगों की बातें सुनकर नीचे का साधु कहने लगा कि - "ऊपर के पूज्यवर्य महाभाग्यशाली सूत्रसिद्धांत पारगामी, निर्दोष चारित्रवान्, शुद्ध आहार लेने वाले हैं, मैं तो शिथिल हूँ, केवल उदरंभरी हूँ, मुझ में प्रशंसा के लायक एक भी गुण नहीं है, मैं साधु धर्म से बिलकुल विमुख हूँ, इसलिये ऊपर के मुनिवर ने जो मुझको अवन्दनीय बताया है वह ठीक ही है।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328