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श्री गुणानुरागकुलकम्
यह तो निःसंशय कहा जा सकता है कि जो अन्यायोपार्जित द्रव्य का परिभोग करता है, उसकी सुबुद्धि नष्ट होकर अकार्य में प्रवृत्ति करने को दौड़ा करती है। इसी विषय को दृढ़ करने के लिए शास्त्रकारों ने एक उदाहरण दिया है कि -
किसी राजा ने राजमहल बनाने के लिए ज्योतिषियों को बुलाकर कहा कि - खात मुहूर्त किस रोज करना चाहिये ? कोई ऐसा मुहूर्त निकालो, जिससे कि हमारी संतति राजभवन में रहकर सूखपूर्वक चिरकाल राज्य करे। राजा के पूछते ही ज्योतिषियों ने सर्वोत्तम खात मुहूर्त निकाल दिया। मुहूर्त के एक दिन पेस्तर नगर में यह उद्घोषणा कराई गई कि - कल राजमहल बनाने का खात मुहूर्त है, इसलिये वहाँ सभी को हाजिर होना चाहिये। इस उद्घोषणा को सुनकर दूसरे दिन सेठ - साहूकार आदि सैकड़ों लोग इकट्ठे हुए। _राजा ने ज्योतिषियों से कहा कि - अब मुहूर्त में कितना समय घटता है ? ज्योतिषी बोले कि चार घड़ी। राजा ने कहा यदि इस समय में कोई वस्तु विधि कराने के लिए चाहिये तो कहो। ज्योतिषियों ने कहा - महाराज ! खात मुहूर्त के वास्ते पाँच जाति के पाँच रन चाहिये, जो कि न्यायोपार्जित हों। राजा ने अपने भंडार से लाने को कहा। इतने में ज्योतिषियों ने कहा कि - राजन ! राज्यलक्ष्मी के विषय में तत्त्ववेत्ता पुरुषों का अभिप्राय कुछ और ही है, अतएव किसी व्यापारी के यहाँ से मँगवाना चाहिये। राजा के पास हजारों व्यापारी उपस्थित थे, उनके तरफ राजा ने देखा, किन्तु कोई व्यापारी बोला नहीं। तब मंत्री ने कहा - जो कोई नीतिपूर्वक व्यापार करता हो, उसको आज राजवल्लभ बनने का समय है, परन्तु सब कोई अपने-अपने कर्तव्यों को जानते हैं, जो कभी स्वप्न में भी नीतिपथ