________________
श्री मुणानुरागकुलकम्
१३७ में हूँ तो उत्तरोतर ऊँची पंक्ति में पहुंचने की अभिलाषा रखनी चाहिए .और अपने से नीचि पंक्ति में रहे हुए जो लोग हैं, उन पर दयालु स्वभाव रख, उन्हें सन्मार्ग में जोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए। ... जो लोग बालविवाह, वृद्धविवाह, कन्या विक्रय करते हैं, एक स्त्री पर अनभिलाषा रख, दूसरी स्त्री से विवाह कर सपत्नी संबंध जोड़ते हैं और अवाच्यपशुओं की तरह बेदरकारी रखते हैं, वे भी 'अधमाधम पुरुषों में शामिल हैं। अतएव अधमाधम कार्यों को सर्वथा छोड़ देना चाहिए, क्योंकि अधम कार्यों से मनुष्य ऊंची दशा पर कभी नहीं चढ़ सकता।
आजकल प्रायः छोटे-छोटे जन्तुओं की दया पालन की जाती है परन्तु पञ्चेन्द्रिय जीव को आजन्म दुःख में डालते हुए कुछ भी विचार नहीं किया जाता । यह एक प्रकार की अज्ञानता ही समझना चाहिए। .
अब श्रीमान् जिनहर्षगणि विषयविकारों की न्यूनाधिक्य से पुरुषों के छे भेद दिखलाते हुए सर्वोत्तमोत्तम पुरुषों का वर्णन करते
पच्चंगुब्भडजुव्वणवंतीणं सुरहिसारदेहाणं। जुवईणं मझगओ, सव्वुत्तमरूववंतीणं ॥१५॥ आजम्मबंयारी, मणवयकाएहिं जो धरइ सील। सव्वुत्तमुत्तमो पुण, सो पुरिसो सव्वनमणिज्जो ॥१६॥ प्रच्चंङ्गोद्भटयौवनवतीनां सुरभिसारदेहानाम् । युवतीनां मध्यगतः सर्वोत्तमरूपवतीनाम् ॥१५॥ आजन्मब्रह्मचारी, मनोवचः कार्यों धरति शीलम् । सर्वोत्तमोत्तमः पुनः, स पुरुषः सर्वनमनीयः ॥१६॥