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श्री गुणानुरागकुलकम् सर्वदेश शिरोमणि 'कच्छ' देश में 'कौशाम्बी' नामक प्रख्यात और सताईस 'वकारों से सुशोभित नगरी में धर्मपरायण 'अर्हदास' नामक सेठ रहता था, उसके सती कुलशिरोमणि 'अर्हद्दासी' नामक श्री थी, उन दोनों के बीच में अनेक मनोरथों से त्रिभुवन में आश्वर्योत्पादक और विनयादिसद्गुणगणालङ्कृत 'विजय' नामक पुत्र रत्न हुआ। वह अभ्यास के योग्य होने पर धर्माचार्य के पास पढ़ने लगा। एक समय धर्माचार्य ने कहा कि
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हे आयुष्मन् ! इस दुःखात्मक संसार में ब्रह्मचर्य के सिवाय दूसरा कोई अमूल्य रत्न नहीं है, क्योंकि ब्रह्मचर्य से अग्नि, जल सर्प- पुष्पमाला, सिंह- मृग, विष-अमृत, विघ्न- महोत्सव, शत्रु-मित्र, समुद्र-तालाब और अरण्य घररूप बनजाते हैं। शील सम्पन्न पुरुष
(१) वापीवप्रविहारवर्णवनिता वाग्मी वनं वाटिका, विद्वद्वाह्मणवादिवारिविबुधा वेश्या वणिग्वाहिनी । विद्यावीर विवेक वित्त विनया वाचंयमो वल्लिका, यस्मिन् वारणवाजिक्काविषया राज्यं तु तुच्छोभते ॥ १ ॥
भावार्थ -राज्य निम्नलिखित सत्ताईस वकारादि शब्द वाच्य पदार्थों से साङ्गोपाङ्गभूषित होकर शोभित होता है- अर्थात् वापी (बावड़ी) १, वप्र (प्राकार) २, विहार (चैत्म) ३, वर्ण (शुक्लनीलादि दृश्य) ४, वनिता (सामान्य स्त्री) ५, वाग्मी
(वावदूक - वाचाल ) ६, वन (अरण्य) ७, वाटिका (उद्यान फुलवाई), ८, विद्वान (पंडित), ९, ब्राह्मण (ब्रह्मनिष्ट) १०, वादी (बाद करने में कुशल) ११, वारि (जल) .१२, बिबुध (देवता) १३, वेश्या (वासना) १४, वणिग् (बानिया), १५, वाहिनी (सेना, अथवा नदी) १६, विद्या (कलाकौशल) १७, वीर (शूर) १८, विवेक (सत्यासत्य का विचार), १९, वित्त (धन) २०, विनय (नम्रता), २१, वाचंयम (साधु) २२, वल्लिका (लताएँ) २३, वारण (हस्ती), २४, वाजी (घोड़ा), २५, वस्त्र (कपड़ा), २६, और विषय (इन्द्रियभोग) २७।
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