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श्री गुणानुरागकुलकम्
विवेचन - स्मृति पथ में दृढ़ीभूत करने के लिए एक वस्तु को वार-बार याद करते रहना, अर्थात् इष्ट वस्तु की पूर्णता प्राप्त करने के लिए एक या अनेक क्रिया का अवलम्बन करने का नाम 'अभ्यास' है। यह एक साधारण नियम भी है कि -
"करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जावते, शिलपर परत निसान॥" - जैसे - बार-बार कुएं पर रस्सी के आने जाने से पत्थर ऊपर निशान पड़ जाता है, उसी प्रकार मूर्ख मनुष्य भी अभ्यास को करते -करते विद्वान बन जाता है। ___कई जगह सुना जाता है कि अमुक मनुष्य मूर्खकुल में उत्पन्न होकर अभ्यास के करने से सर्वत्र प्रतिष्ठा पाकर एक नियन्ता बन गया। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है कि - अभ्यास के आगे कोई कार्य दुःसाध्य हो, क्योंकि-अभ्यास की प्रबलता से निर्बल बलवान,. निर्गुणी गुणवान्, निर्धनी धनवान्, मूर्ख विद्वान्, सरागी वीतराग बन जाता है; अतएव यदि मनुष्य सच्चे मन से धार ले तो तीन भुवनपति-योगीन्द्र बन सकता है, अभ्यास के जरिए वाच्छित वस्तु की प्राप्ति होते देर नहीं होती, इसीसे कहा जाता है कि- 'अभ्यासो हि कर्मसु कौशलमावहति' अर्थात् - अभ्यास संसार में सब कुशलता को परिपूर्ण रूप से धारण करता है। जो लोग अभ्यास के शत्रु हैं वे लोग अभागी हैं, उन्हें किसी सद्गण की प्राप्ति नहीं हो सकती, और न वे किसी उन्नति मय मार्ग पर आरूढ़ हो सकते हैं।
.' अभ्यास - टेव पाडना, परिचय करना, गिनती करना, भावना - पुनः पुनः परिशीलन (विचार) करना।