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श्री गुणानुरागकुलकम् ७. "किसी की बिना परीक्षा किय, उस पर विश्वास मत करो, परन्तु बिना कारण किसी को अविश्वासी भी न समझो।"
८. "धार्मिक सत्पुरुषों को अमूल्य रत्न के समान सदा अपने पास रक्खो या उनके पास रहो। सत्संग करना स्वजीवन को उच्चतम बनाना है।"
९. “जो समय बीत गया, वह फिर कभी न आवेगा; और जो दिन आने को है, कौन जाने तुम उसे देख सकोगे या नहीं, इसलिये जो कुछ करना है, उसे वर्तमान काल में करलो, जो बीत गया, उस पर सोच मत करो और जो आने वाला काल है, उस पर. भरोसा भी मत रक्खो !" .
१०. "कोई काम कल पर न उठा रक्खो, क्योंकि ऐसा करने वालों को कल (स्वास्थ्य) कभी नहीं मिलता।" - .. ११. "आलस्य से दरिद्रता और दुःख उत्पन्न होता है, परन्तु परिश्रमी पुरुष दरिद्रता और दुःख को धक्का मार कर निकाल देता
प्रिय पाठक ! उक्त सुशिक्षा वचनों से आत्मोन्नति बहुत शीघ्र हो सकती है, इससे इन्हों को तुम अपनी आत्मा में धारण करो और सज्जनता से व्यवहार करो, जिससे तुम्हारी आत्मा निरर्थक पापकर्म से बचकर सुखी बने, यदि तुम परापवाद प्रिय बनोगे, तो आत्मोद्धार कभी नहीं हो सकेगा।
वे स्त्री, पुरुष; जो गुणी और चतुर हैं, संसार में अपनी समुन्नति बहुत जल्दी कर पाते हैं और अपनी सोबत में रहने वाले गुणहीन स्त्री, पुरुषों को गुणी बनाकर समुन्नत दशा पर पहुँचा देते