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के प्रयोग किये परन्तु देवने सर्व निष्फल किये तब मंत्रवी उदास होके रहा उसको देव प्रगट होके बोला कि ६ अहो मंत्रवी ! संसारका ऐसा हि खरूप है परमार्थसे कोई भी किसीका खजन नहीं है इत्यादिक वचनोंसे है प्रतिबोध देके देव अपने ठिकाने गया मंत्रवी भी सर्व धनवगैरहका त्याग करके शीघ्र दीक्षा लेके उसी नगरके 3 उद्यानमें केवल ज्ञानपाके मोक्षगया, इतने कहनेकर प्रत्याख्यान पर तेतलीपुत्रका दृष्टान्त कहा ॥८॥
सामायिक पदका प्रथम व्याख्यान कहा६ अब आवश्यक पदका व्याख्यान कहते हैं उभय काल अवश्य जो किया जावे सो आवश्यक कहिये प्रतिक्रम-2 है णका नाम है उसका फल तो यह है कि
आवस्सएणएएण, सावओ जइवि बहुरओ होई । दुक्खाणमंतकिरियं, काहि अचिरेण कालेण ॥१॥ PL व्याख्या-श्रावक यद्यपि बहुत पापयुक्त होवे है तथापि इस पडिक्कमण करके थोड़े कालसे दुक्खोंका विनाश ६ करेगा और भी सुनो
आवस्सअ उभयकालं, ओसहमिव जे करन्ति उजुत्ता। जिणविजकहियविहिणा, अकम्मरोगाय ते हुंती ॥२॥
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