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केवलज्ञान नहीं होवे है इसवास्तै गौतमस्वामीको भगवानने और ग्राम में देवशर्मा ब्राह्मणको प्रतिवोधनेके लिये | भेजा । अब प्रभुका परिवार कहे है अपने हाथसे दीक्षा दिये भये चौदहहजार ( १४००० ) साधुः छतीस हजार साध्वी एकलाख उनसटहजार श्रावक ( १५९००० ) तीन लाख अठारह हजार श्राविका ( ३१८००० ) तीनसैचौदह चौदह पूर्वधारी तेरहसै अवधिज्ञानी सातसै वैक्रीयलब्धिधारी मुनिः सातसै ( ७०० ) केवलज्ञानी पांचसै ( ५०० ) विपुलमतिः ॥ चारसे ( ४०० ) वादी आठसे (८००) अनुत्तर विमानगामी इसप्रकार से समस्त साधुः साध्वी सहित श्रीमहावीरखामी दो उपवाससहित भगवान् तीस ३० वर्ष ग्रहस्थाश्रम में रहे साढेबारह वर्ष और एक पक्ष छद्मस्थ अवस्थामें रहे || कुछ कमतीस वर्ष केवलपर्याय में रहे सब आयुः बहुतर वर्षका पालके कार्तिक वदी अमावसकी रात्रिके चौथे पहर में खातिनक्षत्र में दूसरे चंदसंवत्सर में प्रीतिवर्धनमास नंदिवर्धनपक्ष उपशम दिन देवानंदा रात्रिः सर्वार्थसिद्धः मुहूर्त नागकरण में पद्मासन बैठे हुए चौथे आरेका ३ वर्ष साढेआठ महीना बाकी रहने से इससमय में इन्द्रासन कांपा | अवधिज्ञानसे इन्द्रःप्रभुका निर्वाण कल्याणका समय जानके आया ॥ आंसू डालता हुआ हाथ जोडके बोला ॥
गर्भे जन्मनि दीक्षायां, केवले च तव प्रभो ! । हस्तोत्तरं क्षणेऽधुना तद्गन्ता भस्मको ग्रहः ॥ १ ॥ अर्थ :- हे प्रभो आपके च्यवन १ गर्भापहार २ जन्म ३ दीक्षा ४ केवल ५ इन पांच कल्यणकों में उत्तरा फाल्गु
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