Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ल दीवा०तो विवाह सम्बन्ध करना ऐसा राजाका वचन सुनके अंगीकारकरके वह चले क्रमसे बहुत नगरोंको देखते हुए मेस्त्रयोव्याख्या अयोध्यानगरी गए वहां सब क्रयाना वेचा बहुत लाभ भया । वहांके क्रयाने खरीदे जब रवानेहोनेकी तयारी | दशीका भई तब अपने राजाका वचन याद आया नगरवासी लोगोंके मुखसे कुमरका अद्भुतरूप सुनके राजाके पासमें व्याख्यान. ॥७१॥ जाके कुमरके साथ गुणसुंदरीका विवाह सम्बन्ध किया ॥ राजाभी मासूल वगैरहः छोड़के बहुत आदर किया। वादमे व्यापारी हर्षित होके अपने देशतरफ चले ॥ क्रमसे अपने नगर जाके राजाके आगे सब वृत्तान्त कहा ॥ राजाभी कुमरका अद्भुत् सौभाग्यादि गुण सुनके संतोष पाया वाद जब कन्या वरयोग्य भई तब कुमरको बुलानेके वास्ते राजानें अपने पुरुषोंको भेजे वह अयोध्या जाके अनंतवीर्य राजासे बोले हे महाराज विवाहके वास्ते कुमरको । जल्दी भेजो ॥ राजा सुनके चित्तमें उद्वेग पाया वाद जल्दी उठके राजाने एकान्तमें जाके रानी और प्रधानके 8 आगे इसप्रकारसे कहा अब क्या करना पुत्र तो पांगला है ॥ इसका विवाह कैसा होगा पंगुको अपनी कन्या कौन देगा तब प्रधानमंत्रीने किंचित विचारके उन सेवकोंकों बुलाके इसप्रकारसे बोला इसवक्तमें यहां कुंवर नहीं है ॥ मामेके घरमेंहै मामेका घर तो यहांसे दोसै योजन मोहनीपतनमेंहै इसलिये इसवक्तमें लन नहीं होवे । |पीछे जाना जायगा यह सुनके सेवक बोले हे स्वामिन् मार्ग दूर है इसकारणसे लग्नका निश्चय कर देओ ॥ और आपभी लग्नपर जल्दी आना थह सेवकोंका वचन सुनके सोलहमहीनोंके बाद लग्न होगा ऐसा निश्चयकिया ॥ CLASSACREASE For Private and Personal Use Only

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