Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 143
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 4- CA मुनिनहीं कहेहै तब राजारानी वारंवार प्रार्थना करी तब मुनि मनमें दया लाकर बोले हे राजन् तुमारे पुत्र होनेवाला है परंतु पांगुला होगा ऐसा कहके मुनि गये तव राजा रानीने विचारा हमारे पंगुभी पुत्रतो होगा। क्रमसे रानी गर्भवती भई पूर्ण कालमें पांगुला पुत्र जन्मा राजा पुत्रजन्मकी वधाई सुनके हर्षितहुआ । महोत्सव कराया ॥ बारहवें दिन सब कुटुम्बको भोजन कराके कुमरका पिंगलराय ऐसा नामकिया बाद कुम-* रको अंते उरमें रक्खा बाहर प्रगट नहीं किया जब लोंगोनें पूच्छा तब उसप्रकारसे बोले कुमरका रूप अतिअद्भु-15 दूतहै दृष्टिदोप न हो जाय इस लिये बाहर नहीं निकालते हैं ॥ तब सबनगरमें ऐसी प्रसिद्धिभई कि पिंगल | राजकुमरके सदृश पृथ्वीपर और कोई रूपसौंदर्यवान् नहींहै वाद क्रमसे कुंवर बड़ा हुआ इसअवसरमें अयो-है। ध्यासे सवास योजनदूर मलयनामका देश है ॥ वहां ब्रह्मपुरनामका नगर है वहां इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्रीय शतरथ नामका राजा उसके इन्दुमती नामकी पटरानी उन्होंके गुणसुंदरी नामकी पुत्रीहुई ॥ अतिशय रूपलावण्य सौभाग्यादि गुणयुक्त होतीहुई । उसराजाके पुत्रनहींथा एकही पुत्री थी ॥ इस कारणसे माता पिताके | अत्यन्त वल्लभथी ॥ बाद पुत्रीको वर योग्यजानके उसके योग्य नहीं वर मिलने से राजा उसके विवाहकी चिंतामें 2 आतुर हुआ ॥ उस अवसरमें उसनगरके रहनेवाले व्योपारी बहुतप्रकारके क्रयाणोंसे गाडाभरके देशान्तर जानेको तय्यार भये तब उन्होंसे राजाने कहा ॥ देशान्तर फिरतेहुए तुमको गुणसुंदरी योग्य वरकी प्राप्ति होवे । ACACACACACAUS KAR+CASARAKACEBOOK For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180