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दीवा० व्याख्या
तुम्हारी भार्या मेरी पुत्रीके ठिकाने होवो यही मेरी पुत्रीहै उसदिनसे लेके सेठने प्रीतिसे उन्होंको भोजन अलंकारवस्त्रव
| होलिकागैरहः सब पूर्णकिया कुमरको अपना जमाईकरके रखलिया अब वह ढुंढापरिव्राजकनी मरके पिशाचनी भई पूर्वभवकों पर्वका यादकरके उसने जाना इसनगरमें रहनेवाले लोग दुष्टहैं मेरेको भिक्षाभी नहींदेतेथे बाद वह क्रोधातुर हुई लोगोंको व्याख्यान. चूरणेके वास्ते उसनगरके ऊपर बड़ी शिलाविकुर्वण करी और प्रबल भाग्ययुक्त होलिकाको मारनेको नहीं समर्थ । हुई तब नगरके लोग डरे बलिदान दिया तब पिशाचिनी किसीके शरीरमें प्रवेश करके बोली अहो लोगो में ४ पूर्वके दोनों कुलका वात्सल्य करनेवालीहूं इसलिये भांड़ और भरडाको छोड़कर और सबको मारूंगी बाद लोग मरनेसे डरे हुए और जीने का उपाय नहीं पाते हुए भांड भारडोका आश्रयकिया अपने जीवितके वास्ते सज्जनोंकी मर्यादा छोड़ी असत्यवचन बोलनेवाले दुष्ट वादित्र बजानेवाले ऐसे भांड़ सदृशभये और भस्म धूली कादा वगैरहः। शरीरमें लगाया भरडो जैसे भए तब पिशाचनी प्रसन्नभई और बोली वर्ष वर्ष में होली के दूसरे दिन यह पर्व करना ऐसा कहके चलीगई तबसे यह पर्व प्रवर्तमान हुआ ॥ अब होलिकाका पूर्व भव कहते हैं। | पाटलिपुरनगरमें ऋषभदत्तनामका सेठ रहताथा उसके चन्दना नामकी स्वीथी उन्होंके दो पुत्रों के ऊपर देवीनामकी पुत्रीभई ॥ रूप लावण्यादिगुणोंकरके अतीव शोभितथी कन्या आठ वर्षकी भई तब पिताने पढ़ाई कन्या ४ अपनी माताके साथ पौषध प्रतिक्रमण सामायकादि धर्मकृत्य करतीभई यथाशक्ति व्रत नियमभी पाले उसके घरके
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