Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 174
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा० व्याख्या कथा. ॥८६॥ गरके उद्यानमें श्रीवासुपूज्यःखामीके रुप्यकुंभ खर्णकुंभ नामके दोशिष्य ज्ञानी आए तब राजा परिवारसहित रोहिणी वांदनेको गया गुरूने देशना दी देशना सुनके राजाने पूछा हे भगवन् इस रोहिणीने पूर्वभवमें ऐसा क्या तप|| |किया जिससे दुःखकी बातभी नहीं जानतीहै इसके आठ पुत्र और चारपुत्रियां है मेराभी इसपर बहुत स्नेह है। इससे आप कृपाकरके इसका पूर्वभव कहो यह सुनके गुरु बोले इसीनगरमें धर्ममित्रनामका सेठ रहताथा उसके धनमित्रा नामकी भार्या थी उन्होंके एक कुरूपा दुर्भगा दुर्गन्धा नामकी पुत्री हुई उसको कुरूप देखके कोई पाणि-13 * ग्रहण करे नहीं। तब.पिताने एक श्रीलेन नामका चौरको मारनेके वास्ते राजपुरुष लेजातेथे उसको छुडाके दुर्गन्धाका पतिःकिया वह चौरभी रात्रिमें दुर्गन्धाको छोड़कर चलागया तब सेठने रोती हुई पुत्रीको समझाई हे पुत्रि पूर्वकृतकर्मके उदयसे प्राणिः सुखदुःख पाये है इससे तैं सुकृतकर दान दे धर्मकर जिससे तेरे यह पाप-15 है कर्मका दोष अंत होवे ॥ बाद दुर्गन्धा पिताका वचन अंगीकारकरके निरंतर दानदेवे । एकदा ज्ञानीगुरु वहां आए तब धनमित्र गुरुःको बन्दना करके उस कन्याका स्वरूप पूछा। गुरू बोले गिरिनारनगरमें पृथ्वीपालनामका राजा भया उसके सिद्धिमती नामकी रानी एकदा रानीसहित राजा बनमें क्रीड़ा करनेको गया उस समय ॥८६ कोई साधुः मासक्षमणके पारणेबाला गुणसागरनामका मुनिः भिक्षाकेवास्ते आया राजाने देखा विचार किया। यह साधुः गुणोंका आकर महातीर्थपुण्यपात्र है मुनिःका दर्शन भी बहुत पुण्यसे होते है जिसकारणसे कहाहै ॥ For Private and Personal Use Only

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