Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोगवता हुआ सुखसे रहा एकदा प्रस्तावमें शुभमुहूर्तमें अशोक (चित्रसेन) कुमरको राज्य देके वीतशोक राजाने दीक्षा लिया वाद अशोक (चित्रसेन) राजा सुखसे राज्यपाले क्रमसे अशोकराजाके आठ पुत्र और चार पुत्रीहुई बाद एकदा 8 रोहिणीसहित राजा सातवीं मजलके गोखड़ेमें लोकपालपुत्रको खोलेमें लेके बैठाहुआ क्रीड़ाकरता था उस समय नगरमें कोई स्त्रीका पुत्र मरा वह स्त्री रोतीभई मस्तक छाती कूटतीभई उसमार्गमें आई रोहिणी रानी उसको देखके। राजासे पूछा हे महाराज ये कौनसा नाटक है नाटक तो बहुत देखे हैं परन्तु ऐसा नाटक कभी देखा नहीं तब राजा बोले तैं गर्वसे गहलीभई है रोहिणी बोली खामिन् मैं अहंकार नहीं करुं हुं किंतु मेरेको यह देखनेसे आश्चर्य होता है है यह क्या है तब राजा बोले इस स्त्रीका पुत्र मरगयाहै इससे यह रोती है रोहिणी बोली इसको रोना किसने , है सिखाया यह सुनके राजा बोले तेरेको मैं रोना सिखाऊं रोहिणीके पाससे छोटा पुत्र लोकपालको लेके राजाने अपने हाथसे जमीनपर गिराया तब सब अंतेबरी वगैरह कुमरको देखके हाहा रव किया राजाभी रोने लगे हू | परन्तु रोहिणीके हृदयमें बिलकुल दुःख नहीं हुआ और बोली यह दूसरा नाटक क्या प्रारंभ भया ॥ बाद उस बालकको गिरता हुआ देखके शासन देवताने बीचहीमें लेके सिंहासनपर बैठाया आगे गीतगान नाटककरने लगे तब राजा वगेरहः लोग देखके चमत्कार पाया विचारतेभए यह रोहिणीधन्य है दुःखकी वातभी नहीं जानेहै और यह 8/पुत्रभी धन्य है कि जिसकी देवता सेवा करेंहैं। कोई इहां ज्ञानीगुरु पधारे तो इन्होंका पूर्वभव पूछे बाद उस न-d CHECCANCELECOLOCACOCOC For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180