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दीवा० व्याख्या
होलिकापर्वका
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वगैरेहः करतीथी तथापि उसको भिक्षा पूरी न मिले सबदिन घर घरमें फिरतीरहे परन्तु लाभान्तरायसें कहीं भी पूर्ण भिक्षा नहीं पाये क्षुधासे पीड़ितभई दुर्बल अंग जिसका ऐसी लोगोंपर क्रोध करतीभई बाद मनोरमसेठने उस दाको वलाई सत्कार किया और कहाकि माताजी मेरीपुत्रीको अच्छीकरो तब ढुंढाने उस होलिकाको देखी
प्रकारका रोग नहींजानके एकान्तमें पूछाकि पुत्री तेरे मन में क्या चिंताहै सो कह तब होलिकाने उस ढंढाको ना अभिप्राय कहा तब ढुंढा बोली हे पुत्री रविवारके दिन पूजाके मिससे सूर्य देवके मंदिरमें आना ॥ वहां नो कमरका संग कराऊंगी इसकारणसे जान, यात्रा, जागरण उत्सवोमें दुर्लभ मनुष्योंका संगम होवेहै यथेष्ठ भिचारादिककी सिद्धिःहोवे है बाद रविवारके दिन होलिका वहां गई कुमरभी तपखिनीके संकेतसे वहां आया होलिका विधिःसे सूर्यकी मूर्ति को पूजके जितने पीछी चली उतने कुमरने उसको आलिंगनकरी तब होलिकाने कमरके पीठपर हाथका प्रहारदेके पुकारकरी मेरेपरपुरुषके स्पर्शसे पाप हुआहै उसकी शुद्धि के लिये अग्निमें प्रवेशकरूं तब मरनेको तय्यार भई गुप्त दंभहे जिसका ऐसी पुत्रीको पिता अपने घरलेआया ॥ बाद फाल्गुन पौर्णमाकी रात्रिमें तपखिनीने ओर उन्होंका सम्बन्ध कराया और आप उसके समीप घरमें सोती निश्चिन्त होनेसे जादा निन्द्राआई सिद्ध कार्य होनेसे बादमें होलिका और कुमरने विचार किया।
पटों भियते मन्त्रश्चतुष्कों न भिद्यते। द्विकर्णस्य च मत्रस्य ब्रह्माऽप्यन्तं न गच्छति ॥१॥
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