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दीवा० व्याख्या
॥८२॥
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अर्थः-श्रीचिंतामणिः पार्श्वनाथखामीको नमस्कार करके अक्षयतृतीयाका व्याख्यान लिखता हूं ॥१॥श्रीऋ-12 अक्षयतृषभदेवखामीका पारणा इक्षरससे भया जगत्के स्वामी ऐसे बाकी तेईस तीर्थकरका पहला पारणा अमृतरससदृश तीयाका उपमावाला परमानसे भया ॥२॥
दव्याख्यान. यहां प्रथम श्रीऋषभदेवस्वामीका सम्बन्ध कहतेहैं श्रीऋषभदेवखामी सर्वार्थसिद्ध विमानसे च्यवके आसाढ़वदी चतुर्थीको श्रीमरुदेवाकी कुक्षि में उत्पन्न हुए नवमहीना ४ दिन अधिक गर्भ में रहके चैत्रवदी अष्टमीको आधी रात्रि के समय जन्म भया वीसपूर्वलाखवर्ष कुमरपनमें रहके वेसटपूर्वलाख वर्ष राज्यपालके चैत्रवदी अष्टमीको दीक्षाग्रहणकरी उसवक्त हस्तना (हथना) पुरनगरमें श्रीबाहुबलि के पुत्र सोमयशा राजा उन्होंका पुत्र श्रेयांस कुमर था अथ भगवान् पूर्वकर्मके उदयसे | एक वर्षतक अहारके नहीं मिलनेसे निराहार विहार करते हस्तनापुर आए उस रात्रिमें श्रेयांसादिक तीन जनोंने खाना देखा सो कहते हैं श्याम भया मेरुपर्वत अमृतके भरेहुए घड़ोंसे धोके मैंने उज्वल किया ऐसा खप्ना श्रेयां- ॥८२॥ सने देखा १ तथा सूर्यके बिंबसे हजार किरणें गिरतीथी श्रेयांस कुमरने सूर्यके विंवमें स्थापित करी यह खाना सुबुद्धिः नगरसेठको आया २ एक शूर बहुत शत्रुओंसे रोकागया श्रेयांस कुमरके सहायसे जय पाया यह खन्ना
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