Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir / मेरे घरमे भेटनेके वासागरतकविच्छेदहुआ प्राशुकशानको वन्दना करके बोला पासमें आके अधिक हर्ष हाथी, दीवा. दि अनेक अनर्थका मूल कारण परमाणु मात्रभी परिग्रहकी नहीं इच्छा करतेहैं तो फिर मणिः सोना, कन्या हाथी, अक्षयतृव्याख्या० घोड़ा मोती वगैरह कैसे लेवें ऐसे विचारते गोखड़ेसे नीचे उतरकर भगवान्के पासमें आके अधिक हर्षहोनेसे है। तीयाका ॥ ३॥ रोमोद्गमयुक्त भगवान्को तीन प्रदक्षिणा देके भगवानको वन्दना करके बोला हे भगवन् मेरेपर प्रसन्नहोवो व्याख्यान, अठारह करोड़ाकरोड़सागरतकविच्छेदहुआ प्राशुकअहारदानविधिः अच्छीतरह दिखानेसे भव्यजीवोंका निस्तारकरो 3 मेरे घरमे भेटनेके वास्ते आए इक्षुरसके सौ घड़े, सो लेवो और मेरेको तारो बाद भगवान् चार ज्ञानसहित द्रव्य क्षेत्रादि सामग्री सम्यक जानके इक्षुरस ग्रहणके लिये दोनो हाथ पसारे तब श्रेयांस रत्नपात्र तुल्य श्रीभगवान्को इक्षुरसरूप शुद्ध अहार देता हुआ जादा हर्षके होनेसे अपने शरीरमें हर्ष नहीं माया तब हर्प आंसूद्वारा बाहिर निकला आत्माको धन्य मानता हुआ तीन जगतके पूज्य भगवान्ने आहार लेने कर मेरे ऊपर अनुग्रह हैं किया ऐसा विचारता हुआ इक्षुरस देरहाहै उससमय देवोने हर्षके भरसे आकाशमें पांच दिव्य प्रकट किए यही है श्रुतकेबली भगवान् भद्रबाहुखामी कहतेहैं उसभस्सय पारणए इत्यादि गाथा पहले दिखाई है ऋषभदेवखामी लोकनाथ प्रथम तीर्थकरका प्रथम पारणा इक्षुरससे हुआ भग AAMSASSASSADORROCE For Private and Personal Use Only

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