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मोक्षगए तथा शुकदेवमुनि थावचापुत्र शैलकाचार्य पंथकमुनिः बालिराजर्षिः द्रावड वारिखिल्ल नारदऋषिः ६ वगैरहः और पांचपांडव प्रमुख सत्पुरुष बहुतसे इस श्रीसिद्धाचलपरमुक्तिः प्राप्तभए हैं चैत्रीपौर्णिमाके दिन उप-18 है। वासकरके श्रीसिद्धाचलतीर्थकी यात्राकरे और पूजाध्यानदानादि करे वह नरकतिर्यंचगतिःका छेदकरे तथा चैत्री-16
पौर्णिमाकेदिन श्रीशत्रुजयकी यात्राका विशेष फल कहाहै यतः | चारित्रं चन्द्रप्रभोर्हन् चैत्रीशत्रुजयोऽचलः। विना पुण्यैः न लभ्यन्ते, सरित् शत्रुजयाभिधा ॥१॥ । अर्थः-चारित्र, चन्द्रप्रभुखामीकी सेवा और चैत्रीके दिन शत्रुजयकी यात्रा और शत्रुजयानदी यह चार पुण्य बिना नहीं पाते हैं ॥१॥ इतने कहनेकर चैत्रीपौर्णिमाका व्याख्यान सम्पूर्ण भया । चैत्रीके दिन श्रीगुरूके पास मंत्राक्षरोंसे पवित्र स्नात्रका जललेके अपने घरमें छाटना इससे मारी वगैरहाका उपद्रव शांतहोवे सदा आनंद | होवे ऋद्धिः वृद्धिः सुख प्राप्त होवे इति शम् चैत्रीपौर्णिमाका व्याख्यान समास हुआ।
अब अक्षयतृतीयाका व्याख्यान लिखतेहैं प्रणिपत्य प्रभु पार्श्व, श्रीचिंतामणिसंज्ञकम् । अक्षयादितृतीयाया, व्याख्यानं लिख्यते मया ॥१॥ उसभस्सय पारणए, इक्खुरसोआसि लोगनाहस्स।सेसाणं परमन्नं, अमियरससरिसोवमं आसी ॥२॥
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