Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दीवा० व्याख्या० ।। ७५ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षयकरके मोक्ष गए यहां शरीरका त्याग करके पूर्वप्रयोग बंधनछेदादिकसे सिद्धशिला के ऊपर एकयोजनका चोवीसवां भागऊपरका लोकान्तसिद्धिः क्षेत्र में एक समय में जाके सादिअनंत स्थितिः से रहे । इसप्रकार से पिंगलरायसे मेरु त्रयोदशीका महिमा प्रवर्तमान हुआ । भगवान् महावीरखामीने गौतमखामीवगैरहः के आगे मेरु त्रयोदशीका महात्म्य फरमाया पहले रत्नमयी मेरु चढ़ातेथे वाद स्वर्णमयी उसके बाद रूपेमयी चढ़ते भए इस वक्त घृतमयी मेरुचढ़ाते हैं इसप्रकार से मेरु त्रयोदशीका माहात्म्यः सुनके अहो भन्यो शुद्धभावसे विधिःपूर्वक यह व्रत आराधना | जिससे इस भव में परभव में सवप्रकार के सुखकी प्राप्ति होवे | इतने कहनेकर मेरु त्रयोदशीका व्याख्यान सम्पूर्ण हुआ । अब होलिका पर्वका व्याख्यान लिखते हैं | होलिका फाल्गुने मासे, द्विविधा द्रव्यभावतः । तत्राद्या धर्महीनानां, द्वितीया धर्मिणां मता ॥ १ ॥ अर्थः- फल्गुनमहीने में चतुर्मासकपर्व है दूसरा होलिका पर्व है वह होलिका द्रव्यभावसे दो प्रकारकी होवे है वहां द्रव्यहोली धर्महीन पुरुषकरते हैं भावहोली धर्मियोंके होते है | वहां जो अज्ञानी सत् असत् विवेकरहित सामान्यलोगों के प्रवाह में रक्त श्रीजिनधर्मसेविमुख गतानुगतिक लोक वह काष्ट छानादिकसे अग्निमयी द्रव्यहोली करतेहैं धार्मिकपर्वकी विराधना करते है और दूसरे दिन धूलिसे क्रीड़ा करना अवाच्य बोलना मलमूत्रजलादिकका For Private and Personal Use Only | होलिका पर्वका व्याख्यान. ।। ७५ ।।

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