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| अर्थः- है कानके विचारका भेद होवे चार कानकी बातका भेद होवे या न होवे दो कानके विचारका ब्रह्माभी भेद न पावे ॥ १॥ ऐसा विचारके होलिका अपने घरमें सोती हुई तपखिनीका घर जला के शीघ्र कुमरसहित वहांसे अन्यत्र जाके रही प्रभातमें पुत्रीको जलीहुई जानके सेठने बहुतविलाप किया तब लोगोंने होलिकाको सती समझके उसकी भस्मको नमस्कार किया और मस्तक में लगाई ॥ तबसे लेके प्रतिवर्ष उसदिन होलिकापर्व प्रवर्तमान हुआ वह अभी भी परमार्थशून्य लोग करते हैं बाद कितने दिन जानेसे कुमर होलिकासे बोला अब धन नहींहै इसलिये धन | कमानेको विदेश जाऊं तब होलिका वोली हे खामिन् मेरा कहा हुआ उपाय करो | जिससे धनकी प्राप्तिः होवे | आप मेरे पिताकी दुकान जाओ मेरे वास्ते मोलसे साड़ी लेआओ तब वह वहां जाके साड़ीलेआया स्त्री बोली यह मेरे योग्य नहीं है दूसरी ले आओ वह दूसरी ले आया उसको अयोग्य कही और पीछीदिया तब सेठ बोले तुम्हारीस्त्री आपआके अपनी परीक्षासे साड़ी लेलेवे तब कुमर स्त्रीको सेठकी दुकानपर ले गया उसको देखके सेठ बोला यह तो मेरीपुत्री है तब कामपाल कुमर बोला अहो श्रेष्ठ सेठ आप अपनी पुत्रीको अग्निमें जलीभई क्या नहीं | जानते हैं | जगत् जाहिर बात है परन्तु पहले सूर्यदेव के मंदिरमें आपकी पुत्रीको देखके मेरेको अपनी स्त्रीका भ्रमहु आथा इसवक्त में मेरी स्त्रीको देखनेसे आपको अपनी पुत्रीका भ्रम भया है | इसका कारण यह है कि दोनोंका रूप परस्पर तुल्य है और कारण नहीं है तब यह वचनसुनके सेठ हर्षित हुआ और कामपाल कुमरसे बोला आजसे यह
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