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अथ चैत्रीपौर्णिमाका व्याख्यान लिखते हैं। तीर्थराजं नमस्कृत्य, श्रीसिद्धाचलसंज्ञकम् । चैत्रशुक्लपूर्णिमाया, व्याख्यानं क्रियते मया ॥१॥
सिद्धो विज्झायर चक्की, नमि विनमि मुणी, पुण्डरीयों मुणिन्दो । वाली पजुन्न संवो, भरह सुकमुणी सेलगो पंथगोय। रामो कोडीय पञ्च,द्रविड नरवइ नारओ पण्डुपुता,
मुता एवं अणेगे विमलगिरमहं तित्थमेयं नमामि ॥२॥ अर्थः-श्रीसिद्धाचल नामका तीर्थराजको नमस्कार करके चैत्रसुदीपौर्णमासीका व्याख्यान मैं लिखताहूं ॥१॥ 8 मैं विमलाचल नामके तीर्थको नमस्कार करूं हूं वहां अनेक भव्य प्राणी मोक्ष गए हैं सो कहते हैं जिस विमलाचFलतीर्थपर विद्याधरचक्रवर्ती श्रीयुगादिदेवके पोषक पुत्र नमि विनमि नामके मोक्ष गए उन्होंका सम्बन्ध यह है|
अयोध्या नगरीमें भगवान् ऋषभदेवखामी अपने बड़े पुत्र भरतकोअयोध्याका राज्य देके और पुत्रोंको और देशोंका
विभाग करके दीया भगवान्ने दीक्षालिया तब नमि विनमि कोई कार्यके लिये विदेश गए थे भगवान् के दीक्षा १४लियों बाद नमि, विनमि आये भरतसे पूछा ऋषभदेव हमारे पिता कहां हैं भरत बोले खामीने दीक्षा ग्रहणकिया है
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