Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दीवा० व्याख्या० ॥ ७४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | जन्मान्ध पुरुष कोई वस्तुका रम्य अरम्यपना क्या जानसकता है किंतु नहीं जानसकता ॥ २॥ मिथ्यात्व अभव्याश्रितमिध्यात्वकी अनादिअनंत स्थिति होवेहे और भव्याश्रितमिध्यात्वमें अनादिसान्तस्थितिः होवेहे ॥ ३ ॥ हे राजन् ऐसे मिथ्यात्व के उदयसे जीव कर्मबांधते हैं तुम्हारे पुत्रने भी इसीप्रकारसे पापकर्म उपार्जन किया है उससे पांगुला भया यह मुनिःका वचन सुनके राजा बोले हे भगवन् यह कुकर्म किस धर्मके अनुष्ठानसे नष्ट होवे तब मुनिः बोले हेराजन् तीसरे आरेके अंत में तीन वर्ष साढ़े आठ महीना बाकी रहने से माघवदी त्रयोदशी के दिन श्रीऋष भदेव स्वामीका निर्वाणकल्याणक भया । उसलिये वह दिन श्रेष्ठ है उस दिन चौविहार उपवासकरके रत्नमई पंचमेरु तीर्थकरके आगे चढ़ाना वीचमें एक बड़ामेरु चार दिशा में चार छोटा मेरु उन्होंके आगे चार दिशामें चार नंद्यावर्त करना दीप धूपादिपूर्वक बहुत प्रकारकी पूजा करना इसप्रकार से तेरह महीनोंतक अथवा तेरह वर्षतक यह तप करना तथा ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवपारंगताय नमः इसपदका दोहज़ार जाप करना ऐसे महीने महीने करते सम्पूर्ण | रोगका क्षय होवे है इसभवमें परभवमें सुख संपदा पावे ॥ जो त्रयोदशीको पौषधकरे तबपहले कहा हुआ | विधिः पारनेके दिन करके गुरूकोपड़िलाभके पारना करे इसप्रकार से गुरूका वचन सुनके अनंतवीर्य राजा पुत्र सहित मेरु त्रयोदशीका व्रत अंगीकारकरके गुरुको नमस्कारकरके अपने ठिकाने गया बाद पिंगलराजकुंमर माघवदी त्रयोदशीको पहला व्रत किया तब पगोमें अंकुर प्रगटभये ऐसे तेरह महीनों तक तपकरनेसे सुंदर पग For Private and Personal Use Only मेरुत्रयो दशीका व्याख्यान ॥ ७४ ॥

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