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पहले देवद्रव्य खायाथा | एक मृगीका चारपग काटाथा वह कर्मबहुतक्षय होगया थोड़ासा बाकी है इसकार - णसे तीर्थजलनही फर्शता है तीव्रकर्मको भोगनेसिवाय क्षयनहींहै ऐसा मुनिःका वचन सुनके माता पिता पुत्रवैराग्य प्राप्त भया बाद श्री ऋषभदेवखामी के चरणों मे नमस्कारकरके ॥ घरआके धर्म करने में उद्यमवान भये इसप्र कारसे सोलह हजार वर्ष कुष्ट प्रणादिपीड़ा भोगवके उस कर्मको आलोयके काल करके पहले देवलोक में देव हुआ वहांसे व्यवके हे राजन् अनंतवीर्य यह तुम्हारा पुत्र भया पिंगलराय इसका नाम है इसप्रकारसे गांगिलमुनिः कुम|रका पूर्वभव कहके वोले ॥
मद्यपानाद् यथा जीवो, न जानाति हिताहिते । धर्माऽधर्मो न जानाति, तथा मिथ्यात्वमोहितः॥१॥ मिथ्यात्वेनालीढचित्ता नितान्तं, तत्वातत्वं जानते नैव जीवाः ।
किं जात्यन्धाः कुत्रचिद्वस्तुजाते, रम्यारम्यव्यक्तिमासादयेयुः ॥ २ ॥ |अभव्याश्रितमिथ्यात्वेऽनाद्यनन्तास्थितिर्भवेद् । सा भव्याश्रितमिथ्यात्वेऽनादि सान्ता पुनर्मता ॥ ३ ॥ अर्थ, जैसे मदिरापान करने से जीव हिताहित नही जानता है वैसे मिथ्यात्व से मोहित प्राणी धर्माऽधर्म नहीं जानताहै ॥ १ ॥ मिथ्यात्व से व्याप्त है अत्यन्तचित्त जिन्होंका ऐसे जीव तत्वातत्वको नहीं जानते हैं दृष्टान्त कहते है
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