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चा. व्या. १३
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| पाठशाला में पठने के वास्ते जाता भया जुवारियों के साथसे जुआ सीखा क्रमसे सात व्यसन सेवनेमें ततपर भया राजाने बहुत मना किया तब भी सातव्यसनको नहीं छोड़ा तब अयोग्य जानके देशसे वाहिर निकालुदिया तो भी व्यसनको नहीं छोड़ा देशाटन करता हुआ सुरपुरनगर में आया वहां चंपकसेठने सुंदर आकार देखके उत्तम पुरुष यह है । सुकुमार है इससे और कार्य नहीं होगा ऐसा जानके इससेविशेष कार्य नहीं होगा ऐसा विचारके अपने घरके पासमें जिनमंदिरकी रक्षा के वास्ते सामंतसिंहको अपने घरमें रख्खा बाद वह दुष्टात्मा तीर्थकरके आगे चढ़ाएहुए चावल सुपारी वगैरह छानालेके जुआ रमनेको गया कितने दिनों के बाद सेठने वह जानके उससे कहाहे भद्र जो पुरुष देव द्रव्यादिक खावे वह अनंतकाल संसार में परिभ्रमण करे इसकारण से अब यह कार्य नहीं करना ऐसा बहुत वक्त उपदेश दिया तो भी वह दुष्ट मित्थात्व अज्ञानादितीत्रकर्मके उदयसे नही निवृत्त हुआ ॥ एकदा प्रभुःका छत्रादिआभरण लेके अनाचार सेवता भया तब सेठने वह खरूप जानके घरसे वाहिर निकालदिया बाद जंगल में फिरता भया मृगया करता भया बहुत जीवोंको मारकर पेटभरे ॥ अथ उसी वनमें तापसोंका आश्रम है | वहां बहुतसे तापस तप करते हैं मृग भी वहां आकर बैठते हैं एकदा एक गर्भवती मृगी आश्रम में आतीथी सामन्तसिंहने उसका चारों पग वाणसे काट दिया मृगी गिरगई तापसोने देखी धर्म सुनाया मृगी मरकर सद्गतिगई बादतापस सामन्तसिंह से बोले जैसे तैंने हमारी मृगीका पग काटा वैसा तैं भी परभव में पांगुला होगा । ऐसा शाप देके
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