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क्षोभातुर भया नहीं देवनेजानके विशेष उपसर्गकिया ॥ मुनिः शुभ अध्यवसायसे क्षपक श्रेणीचढके केवल ज्ञान पाया ॥ भव्योंकों प्रतिबोधके सुव्रतमुनिः मोक्षगया ॥ इसप्रकारसे श्रीनेमिनाथ स्वामीके मुखसे सुनके श्रीकृष्ण है वासुदेवः प्रमुख मौन एकादशीके तपकरनेमें आदरवानहुए ॥ तवसे मौन एकादशीके तपकी बड़ी प्रसिद्धिः
भई ॥ ऐसा सुनके श्रावकोंको भी मौन एकादशीका व्रत करने में विशेष प्रयत्न करना ॥ इतने कहनेकर मौन है एकादशीका व्याख्यान सम्पूर्ण भया ॥
अब पौषदशमीकी कथा कहते हैं प्रणम्य पार्श्वनाथांघ्रिपङ्कजं सर्वसौख्यदम् । समस्तमङ्गलश्रेणिलतापल्लवताम्बुदम् ॥१॥ भव्यजीवप्रबोधार्थ, जन्तूनां च सुखाप्तये। पौषकृष्णदशम्याश्च, माहात्म्यं कथ्यतेऽधुना ॥२॥
अर्थः-सर्व सुखके करनेवाले समस्त मंगलश्रेणी रूपलताको प्रफुल्लित करने में मेघके जैसे ऐसे श्रीपार्श्वनाथखामीके चरणकमलोंको नमस्कार करके ॥ १॥ भव्यजीवोंको बोधकेवास्ते और प्राणियोंकों सुखकी प्राप्ति के लिये पौषवदीदशमीका माहात्म्य किंचित् कहता हूं ॥२॥ इसजम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें अङ्गदेशमें चंपानामकी नगरीहै उसके बाहिर ईशानकोणमें पूर्णभद्रनामचैत्यव नसण्डसहितहै वहां श्रीमहावीरखामी चर्मतीर्थकर समवसरे
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