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दशमी, एकादशी तीनदिन एकाशनाकरना ॥ जमीनपरसोना ब्रह्मचर्य पालना | दोटंक प्रतिक्रमणा देववंदन जिनमंदिरमें त्रात्रादि महोत्सव करना ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ अर्हते नमः इस पदको दोहजार ( २००० ) वक्त गुणना || पारनेके दिन खामीवच्छ करना ऐसे दशवर्षतक विधि से यह तपकरना ऐसे आराधन करनेसे इसलोकमें धनधान्य सौभाग्य आदिक और परलोक में स्वर्गसुख और क्रमसे मोक्षसुख पाये है | ऐसा सुनके हर्षके | प्रकर्षसे विकसित हुआ है नेत्र जिसका ऐसा सेठ जैनधर्म अंगीकारकरके गुरुको वंदनाकरके अपने घर गया ॥ आचार्य अन्यत्र विहार करगए | सेठने दशमीका तपकरना प्रारंभ किया || दशमहीने जानेसे कालकूटद्वीपसे | जहाज आए नौकरके मुख से सुनके सेठने नहीं माना तब सेटकी स्त्री शीलवतीने कहा हे स्वामिन् यह सत्यही जानो । असत्य नहीं है इसकारणसे आज अपने घरमें निधान प्रगटहोगा । तब सत्यसमझना । ऐसा कहके निधान देखा निधान प्रगटहुआ तबसेट अपनी स्त्रीसे बोला हे प्रिये जैनधर्मके प्रभावसे जहाजोंकी बधाई आई इग्यारह करोड़ सोनइय्योंका निधान प्रकट हुआ ॥ श्रीपार्श्वनाथस्वामी के प्रसादसे और गुरुके उपदेश से मैं श्रीमान भया ॥ बाद जैनधर्मकी वासना से सुखसे कालगमाते ॥ नगरसेठ पदवी पीछे पाई ॥ सेठ के दशपुत्रभये राजा सत्कार | करके अपने पास में रक्खा | एकदा प्रस्ताव में देवेन्द्रसूरिः बिहार करतेभये वहां समवसरे ॥ सेठ बांदनेकोगए ॥ औरभी नगरके लोग बांदनेको गए वंदना करके यथास्थान बैठे गुरूने देशनादिया देशना के अंत में सेठने प्रश्न किया है
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