Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दीवा० व्याख्या
पौष
RDCORDSMSADSASARASA%
खामिन् दशमीके उद्यापन में क्या करना ॥ गुरू बोले हे श्रेष्ठिन् दशपुस्तक लिखाना दशपूठा पटरी दशवीटाङ्गना दशठवनी दशथापनाचार्य दशनौकरवाली दशचन्द्रवा दशजिनमंदिर दशजिनप्रतिमा कलशप्याला दीपक, आरती | दशमीका वगैरह दशदश पूजाके उपकरणकरना ॥ ऐसे ज्ञान, दर्शन, चारित्रके दशदश उपकरणकरना ॥ दशदिनका उत्सव व्याख्यान. खामीवच्छल, संघपूजाकरके शासनकी प्रभावना करनी॥ ऐसे गुरुके बचनसुनके सेठ उजवना किया ॥ मणिरत्नके है जिनबिंबकराए पीछे कितने दिनोंकेबाद वैराग्यवासितचित्तजिसका ऐसा सेठ सुंदरनामका बड़े पुत्रकों घरका । भारदेके सबकों बुलाके बोले कि हे पुत्रो तुम दशमीकेदिन श्रीपार्श्वनाथखामीकी सत्तरह प्रकारकी पूजाकरके टू व्याख्यान सुनके घरआके साधुओंको पडिलाभके एकाशना करके चौविहारका पचखानकरना पारनेकेदिन स्वामी-| वच्छलकरना ॥ इस विधि से दशमीका आराधन करनेसे हम सुखीभएहैं तुमकोभी ऐसाही करना जिससे सुखी होवोगे ॥ ऐसी पुत्रोंको शिक्षादेके गुरूके पासमें जाके वंदना करके ऐसाबोला हे भगवन् मेरे ऊपर कृपाकरके चारित्रदेवो ॥ जिससे वर्ग अपवर्गका सुखपाऊं ॥ तब गुरूबोले जैसा सुख होवे वैसा करो ऐसा सुनके चारित्र ग्रहणकिया ॥ नानाप्रकारका षष्ठ अष्टमादि तप करताहुआ बारहवर्षके बाद पन्द्रह दिनका अनशन करके समा-12॥ ६९ ॥ |धिःसे मरणपाके दशवे देवलोकमें बीससागरोपमका आयु, ऐसा देवहुआ ॥ अनुक्रमसे देवसुख भोगवके प्राणतः |देवलोकसे च्यवके इसी जम्बूद्वीपके महाविदेहक्षेत्रमें पुष्कलावती विजय मंगलावतीनगरीमें सिंहसेनराजाकी
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180