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दीवा० व्याख्या
पौष
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खामिन् दशमीके उद्यापन में क्या करना ॥ गुरू बोले हे श्रेष्ठिन् दशपुस्तक लिखाना दशपूठा पटरी दशवीटाङ्गना दशठवनी दशथापनाचार्य दशनौकरवाली दशचन्द्रवा दशजिनमंदिर दशजिनप्रतिमा कलशप्याला दीपक, आरती | दशमीका वगैरह दशदश पूजाके उपकरणकरना ॥ ऐसे ज्ञान, दर्शन, चारित्रके दशदश उपकरणकरना ॥ दशदिनका उत्सव व्याख्यान. खामीवच्छल, संघपूजाकरके शासनकी प्रभावना करनी॥ ऐसे गुरुके बचनसुनके सेठ उजवना किया ॥ मणिरत्नके है जिनबिंबकराए पीछे कितने दिनोंकेबाद वैराग्यवासितचित्तजिसका ऐसा सेठ सुंदरनामका बड़े पुत्रकों घरका । भारदेके सबकों बुलाके बोले कि हे पुत्रो तुम दशमीकेदिन श्रीपार्श्वनाथखामीकी सत्तरह प्रकारकी पूजाकरके टू व्याख्यान सुनके घरआके साधुओंको पडिलाभके एकाशना करके चौविहारका पचखानकरना पारनेकेदिन स्वामी-| वच्छलकरना ॥ इस विधि से दशमीका आराधन करनेसे हम सुखीभएहैं तुमकोभी ऐसाही करना जिससे सुखी होवोगे ॥ ऐसी पुत्रोंको शिक्षादेके गुरूके पासमें जाके वंदना करके ऐसाबोला हे भगवन् मेरे ऊपर कृपाकरके चारित्रदेवो ॥ जिससे वर्ग अपवर्गका सुखपाऊं ॥ तब गुरूबोले जैसा सुख होवे वैसा करो ऐसा सुनके चारित्र ग्रहणकिया ॥ नानाप्रकारका षष्ठ अष्टमादि तप करताहुआ बारहवर्षके बाद पन्द्रह दिनका अनशन करके समा-12॥ ६९ ॥ |धिःसे मरणपाके दशवे देवलोकमें बीससागरोपमका आयु, ऐसा देवहुआ ॥ अनुक्रमसे देवसुख भोगवके प्राणतः |देवलोकसे च्यवके इसी जम्बूद्वीपके महाविदेहक्षेत्रमें पुष्कलावती विजय मंगलावतीनगरीमें सिंहसेनराजाकी
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