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* गुणसुंदरीराणीके कुक्षिःरूपसरोवरमें हंसके जैसा उत्पन्न होगा जैसेनकुमारनाम होगा ॥ वहां संसारिक सुखभो
गवके पीछे चारित्रग्रहण करेगा ॥ इग्यारह अंग बारहउपाङ्गपढ़ेगा ॥ एकाकी विहारकरता हुआ एकदा काउस्स
ग्गमें खड़ारहेगा ॥ वहां उसवनका अधिष्ठाता मिथ्यात्ववासितदेवः साधुको नकुल, विच्छू, सर्प, हाथी, सिंह, है ब्यान, पिशाच, राक्षस, खेचर बेतालप्रमुख इक्कीसउपसर्गकरेगा ॥ मुनिः तो शमदमगुणकरके शुक्लध्यानसे चार
घातीकर्मोका क्षयकरके केवलज्ञान पावेगा ॥ शीलवती चारित्रलेके पालके देवलोकगई ॥ महाविदेह क्षेत्रमें मोक्ष जावेगी । जैसेनकेवली बहुतभव्योंको प्रतिबोधके मोक्ष जावेंगे ॥ इसप्रकारसे श्रीवर्धमानखामीने 3 श्रीगौतमखामीसे पौषदशमीका खरूप कहा ॥ वह सुनके श्रीगौतमखामीने भगवान्को नमस्कार किया ॥ तपसंयमसे आत्मा भावन करते भए रहे ॥ अहो भन्यो पौषदशमीका माहात्म्य सुनके यह व्रत अवश्य करना ॥ जिससे सुख संपदा होवे ॥ यह चरित्र सुननेसे यह व्रत करनेसे इसभवमें धनधान्यादिसमृद्धिः-पावे ॥ परभवमें खर्ग अपवर्गका सुख प्राणीपावे है ॥ इतने कहने कर पौष दशमीका व्याख्यान सम्पूर्ण हुआ।
अथ मेरुत्रयोदशीका व्याख्यान लिखतेहै ॥ श्रीयुगादिजिनं नत्वा, ध्यात्वा श्रीगुरुभारतिम् । मेस्त्रयोदशीव्याख्या, लिख्यते लोकभाषया ॥१॥
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