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श्रीपार्श्वनाथ अर्हते नमः इसपदका दो हजार (२०००) जाप करना ॥ बारह लोगसका काउसग्ग बारह प्रदक्षिणा बारहखमासमन । वगैरहः मनवचनकायाकी शुद्धिःसे आराधन करनेवाला इसभवमें धन धान्य पुत्र कलत्रादि सुखपावे है | परलोकमें देवादि ऋद्धिः भोगवके परंपरासे निर्वाण जावे है ॥ ऐसा भगवान्ने कहा तब श्रीगौतमखामी बोले| हे प्रभो पहलेकिसने यहपर्व आराधन किया है ॥ सो अनुग्रहकरके कहिये ॥ भगवान् बोले हे गौतम तेइसवां तीर्थकर श्रीपार्थनाथ खामीके और मेरे अंतरमें शूरदत्त नामका सेठ भया उसने यह पर्व आराधा सो कहते हैं। ६ जम्बूद्वीप भरतक्षेत्रमें सुरिन्द्रपुर नामका नगर है वहां नरसिंह नामका राजा भया ॥ राजाके चतुर, गुणवती 8
शील अलंकारसहित गुणसुंदरी नामकी पटरानी थी। उसनगरमें शूरदत्त नामका सेठ रहताथा ॥ उसके शील अलं-16 कारधारनेवाली पतिव्रतादि गुणयुक्त शीलवती नामकी स्त्रीथी॥ यद्यपि कुबेरके जैसा महा धनाढ्य यशस्वी सेठथा परन्तु मिथ्यात्ववासित कपिलमतावलंवि त्रिदंडियोंका भक्त शेवधर्मको आराधनमें तत्पर जैन धर्मको नहीं जाने ॥ कहा है।
न देवं नाऽदेवं न शुभगुरुमेवं न कुगुरुं ॥ न धर्म नाऽधर्म न गुणपरिणद्धं न विगुणम् ॥ | न कृत्यं नाकृत्यं न हितमहितं नापि निपुणं ॥ विलोकन्ते लोका जिनवचनचक्षुर्विरहिताः॥१॥
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