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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SC-ALIGALA क्षोभातुर भया नहीं देवनेजानके विशेष उपसर्गकिया ॥ मुनिः शुभ अध्यवसायसे क्षपक श्रेणीचढके केवल ज्ञान पाया ॥ भव्योंकों प्रतिबोधके सुव्रतमुनिः मोक्षगया ॥ इसप्रकारसे श्रीनेमिनाथ स्वामीके मुखसे सुनके श्रीकृष्ण है वासुदेवः प्रमुख मौन एकादशीके तपकरनेमें आदरवानहुए ॥ तवसे मौन एकादशीके तपकी बड़ी प्रसिद्धिः भई ॥ ऐसा सुनके श्रावकोंको भी मौन एकादशीका व्रत करने में विशेष प्रयत्न करना ॥ इतने कहनेकर मौन है एकादशीका व्याख्यान सम्पूर्ण भया ॥ अब पौषदशमीकी कथा कहते हैं प्रणम्य पार्श्वनाथांघ्रिपङ्कजं सर्वसौख्यदम् । समस्तमङ्गलश्रेणिलतापल्लवताम्बुदम् ॥१॥ भव्यजीवप्रबोधार्थ, जन्तूनां च सुखाप्तये। पौषकृष्णदशम्याश्च, माहात्म्यं कथ्यतेऽधुना ॥२॥ अर्थः-सर्व सुखके करनेवाले समस्त मंगलश्रेणी रूपलताको प्रफुल्लित करने में मेघके जैसे ऐसे श्रीपार्श्वनाथखामीके चरणकमलोंको नमस्कार करके ॥ १॥ भव्यजीवोंको बोधकेवास्ते और प्राणियोंकों सुखकी प्राप्ति के लिये पौषवदीदशमीका माहात्म्य किंचित् कहता हूं ॥२॥ इसजम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें अङ्गदेशमें चंपानामकी नगरीहै उसके बाहिर ईशानकोणमें पूर्णभद्रनामचैत्यव नसण्डसहितहै वहां श्रीमहावीरखामी चर्मतीर्थकर समवसरे SARSCIRCLOSROSAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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