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दीवा० व्याख्या
॥ ५९॥
लोग बांदनेको आए ॥ श्रीकृष्णवासुदेवः बड़ीऋद्धिःसे बांदनेको आए तीनप्रदक्षिणादेके वंदनानमस्कार है। मौन एकाकरके बोले ॥ हे खामिन् एकवर्षके तीनसैसाठ दिन होतेहे ॥ उसमें कृपाकरके एकदिन ऐसा बताओ कि उसको दशीका आराधके दान, शील, तप, व्रत शक्तिहीनभी मैंहूं सो मेरा निस्तार होवे ॥ तब भगवान् बोले हे वासुदेव जब व्याख्यान. ऐसा है तो तुम मगसरसुदी ग्यासको आराधो ॥ कहाहै ॥ अपि मिथ्यादृशां मान्या, सा मौनैकादशीतिथिः । मार्गशीर्षाख्यमासस्य शुक्लपक्षे प्रकीर्तिता ॥१॥ तत्र पुण्यकृतं स्वल्पमपि प्रौढफलं भवेत् । तस्मादाराधनीया सा विशेषेण विशारदैः ॥ २॥ सर्वेभ्योऽपि च पर्वेभ्यः, पर्वपर्युषणाह्वयम् । दिनेभ्योऽप्यखिलेभ्योयं, तथा मुख्योऽस्ति वासरः॥३॥
श्रमणैः श्रमणीभिश्च, श्रावकैः श्रावकादिभिः । धर्मकर्म विधातव्यमस्मिन् दिने विशेषतः ॥ ४॥ PI अर्थः-मगसरसुदी एकादशीपर्व सबोंके मान्यहै ॥ वह मौनएकादशी कहीजावेहै ॥१॥ उसमें थोड़ाभी| |सुकृत कियाहुआ बहुत फलदाई होताहै इससे विशेषकरके विचक्षणोंको मौनएकादशीका आराधन करना ॥२॥ जैसे सर्व पर्वो में पर्युषणापर्व विशेष कहाजावेहै। वैसा सर्वदिनों में यह मौन इग्यारसका दिन विशेष है ॥३॥साधुः, साध्वी श्रावकः श्राविकाको इस दिन विशेषतः धर्मकार्य करना ॥४॥ ऐसा सुनके श्रीकृष्ण बोले हे प्रभो पहले
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