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॥ १ ॥ जैसे इस भरतक्षेत्र में पांच कल्याणक हुए || वेसैहीपांचभरतक्षेत्र में पांच ऐरवत क्षेत्रमें यह दश क्षेत्रके मिलानेसे पच्चास (५०) कल्याणक भया । इस प्रकारसे अतीत वर्तमान अनागत कालकी अपेक्षा डेढ़सौ कल्याणक भया इस मगसरसुदि ग्यारसको उपवास करनेसे डेढ़ से उपवासका फल होता है | इस दिनमें उपवासकरके मौनधारके अठपहरीपोपहकरके रहना भणना गुणना वगैरहः स्वाध्यायकरना और कुछ बोलना नहीं ॥ पारने उत्तरपारनेके दिन एकाशना करना || पारनेके दिन मंदिरजाके तीर्थकरके आगे फलचढ़ा के भावसे जिनपूजा करना ॥ बाद में गुरूके पासजाके बंदनाकरके ज्ञानपूजा करके साधुओंको पड़ि लाभके पारना करना । इस प्रकारसे ग्यारह वर्ष (११) महीनापर्यंत व्रतकरना ॥ बारहवें वर्ष में तप पूरण होनेसे पौषधपारके गुरूको वंदनाकर तीर्थकरके आगे ग्यारह पक्कान्न ग्यारह फल ग्यारह प्रकारका धान्य औरभी सुंदर वस्तु ग्यारह ग्यारह चढ़ाना || जघन्यवी ग्यारह | श्रावकाका वात्सल्यकरना || संघपूजा, ग्यारह पुस्तकोंका लिखाना इस प्रकारसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र उपयोगी - इग्यारह इग्यारह उपकरण करके उद्यापन करना ॥ उज्जवना करनेसे तपप्रमाणफलदायक होये है ॥ जैसें मंदिरबनाके कलश, दण्ड ध्वजा चढ़ानेसे मंदिर सम्पूर्ण कहाजावे है | वैसे उज्जवना करनेसे तप सम्पूर्ण होवे है | यहां कथानक कहते हैं || एकदा प्रस्तावमें श्रीनेमिनाथस्वामी ग्रामानुग्राम विचरतेभये आकाशगत छत्रचामरोंकर के | शोभित सोनेके कमलपर चलतेहुए भगवान् द्वारिकानगरीके बाहिर रेवताचल उद्यान में समवसरे ॥ नगरके
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