Book Title: Dwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Author(s): Jinduttsuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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SANSKRROROSSA
विनमिः राजाकी चौसटपुत्री चैत्रवदी चतुर्दशीके दिन अनशन करके सद्गतिगई। इस कारणसे मोक्षमंदिर चढने में सोपानसदृश यह तीर्थ है ॥ और पापरूपमैल धोने में पानीके सदृश जानना ॥ इसलिये विमलगिरि ऐसा इसका, नाम है ॥ और पापशत्रुको जीतनेमें महासुभटके जैसा जानना ॥ और जिसने मनुष्यभव पाके शत्रुजय जाके आदीश्वरकी भक्तिःपूर्वक द्रव्यभावपूजा नहींकिया उसने मनुष्यभवपशूके जैसा हारदिया॥जो तीर्थयात्राका उत्साह अपने हृदयमें धारके श्रीशत्रुजयजाके यात्राकरे उसका जीवित सफलहोजाय ॥थोड़े कालमें शिवसुख पावे ॥ ऐसे गुरुमुखसे सिद्धगिरिःका महिमा सुनके सिद्धाचलकीयात्रावास्ते दशकरोड़मुनिसहित द्राविड वारिखिल्ल वल्कल चीवर धारतेभए ॥ तापस अपने गुरूकीआज्ञा लेकर शत्रुजयतरफ चले ॥ मुनीभी अन्यत्र विहारकरगये॥ द्राविड़, वारिखिल क्रमसे चलतेहुए परिवारसहित शत्रुजय पहुंचे ॥ भावसे साधुधर्म अंगीकारकरके चारमहीनोंका उप-द वासकरके शजयपर चौमासा रहे ॥ तपकरतेभये संयमसे आत्माको भावनकरते शुभध्यानयोगसे कर्मराशिको । दूरकरके चतुर्मासिके अंतदिनमें अर्थात् कार्तिकपौर्णमासीके दिन शुक्लध्यान ध्यातेभये क्षपकश्रेणीकरके घनघाती चारकोका क्षयकर केवलज्ञान केवलदर्शन पाके सर्व लोकालोकको जानते भये अयोगी चौदहवां गुणठानास्पर्शके अधातीकर्मका क्षयकरके द्राविड वारिखिल्ल राजर्षि दशकरोड़ मुनियोंके साथ मोक्षगये ॥ अचल अक्षय शिव निरुपद्रवपद पाया इस कारणसे कार्तिक पूर्णिमा अतीव उत्तम पर्व हे ॥ इसलिये कार्तिकपौर्णमासीके दिन श्रीश
SASARAKASARAKAR
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