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दीवा०
व्याख्या०
॥ ५७ ॥
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जब वह सावचेतहुआ मुनियोंने उसका अल्पआयुः जानके नवकार सुनाया और बिमलाचलका महिमाकहा | उस हंसने मुनिः के वचनधारे उसके प्रभावसे वह हंस मरके पहले देवलोक में देवभया || थोड़ी वक्त के बाद मुनियों के पास आके नमस्कार करके आगेबैठा | उस अवसरमें देवकी ऋद्धि और रूप देखके द्राविड वारिखिलने मुनियोंसे पूछा हे भगवन् यह अत्यन्तरूप कान्तिः के धारनेवाला कौनदेव है । तब मुनि बोले यह हंसकाजीव नमस्कार सुनने से तीर्थराजशत्रुंजयका महिमाघारने से देवभया इसवक्त शत्रुंजयकी यात्राकरके यहां आया है | ऐसा सुनके तापसोंने पूछा हे खामिन् विमलाचलतीर्थ कहां है और कैसा है उसकामाहात्म्य हमारेऊपरकृपाकरके सुनावो ॥ तब मुनिवोलेकि जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध भरतमें सोरठदेशका मंडन १०८ नाम है जिसका ऐसा शत्रुंजयनामका महातीर्थ है और शत्रुंजय १ पुंडरीकर २ सिद्धक्षेत्र ३ विमलाचल ४ सुरगिरिः ५ ॥ महागिरिः ६ श्रीवृंद ७ इन्द्रप्रकाश ८ महातीर्थ ९ इत्यादि इक्कीसनामइसके प्रसिद्ध हैं । यह पर्वतनाम निक्षेपसे शाखता है ॥ अनंतकालकी अपेक्षासे सिद्धशैलपर अनंतेमुनि मोक्षगये हैं | अतीत उत्सर्पिणीकालमें सम्प्रतिनाम चौबीसवां तीर्थकरों के प्रथम गणधर कदम्बनामके करोड़ मुनियों के साथ मुक्तिगये | वर्तमानकालमें पहलातीर्थकरका प्रथमगणधर पुंडरीकनाम के चैत्री पौर्णमासी केदिन पाँच करोड मुनियों के साथ शत्रुंजयपर शिवपुरीको गए । इससे पुंडरीकगिरि ऐसा नाम कहाजावे || फाल्गुनसुदी दशमीको दोदोकरोड़ मुनियोंके परिवारसे नमि विनमि विद्याधर राजर्षिः सिद्धाचलपर मोक्षगए | और नमिः
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कार्तिक पौर्णिमा व्याख्यान.
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