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दीवा० व्याख्या०
॥ ६० ॥
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भौमं मंगलं वृष्टिनामकरणे, भद्रा कणानां क्षये ॥ वृद्धिः शीतलता च दुष्टपिटके, राजा रजः पर्वणि॥ | मिष्टत्वं लवणे विषे मधुरता, दग्धे गृहे शीतलं ॥ पात्रत्वं च पणाङ्गनासुगदितं, नाम्नां परं नार्थकम् ॥१॥ अर्थः- भौमनाम ग्रहको मंगल कहते हैं । सो नामसे मंगल है | ऐसाही वृष्टिनाम करणको भद्रा कहते हैं अन्नके क्षयमें वृद्धिः कहते हैं । दुष्टपिटकको शीतल कहते हैं | होली पर्व में राजा बनता है । लवणको मीठा कहते हैं ॥ विषको मधुर कहते हैं । घरबलने में शीतलकहते हैं । वेश्याओं को पात्र कहते हैं ॥ इत्यादिक नामसे कहेजाते हैं उन्हों में अर्थ नहीं है | ऐसा बालकका नाम नहीं दिया किन्तु गुणनिष्पन्नः सुत्रतकुमर ऐसा नाम दिया । वह पुत्र पांचधाओंकरके पालागया ऐसा आठ वर्षका हुआ देखके पिताने विचार किया ||
रूपलावण्यसंयुक्ता, नरा जात्यादिसंभवाः । विद्याहीना न राजन्ते ततोमं पाठयाम्यहम् ||१|| अर्थः- रूपलावण्यादिसंयुक्त प्रधान जात्यादिक में उत्पन्नभये मनुष्य विद्याहीन होवे सो नहीं शोभते हैं | इसलिये | पुत्रको मैं पढ़ाऊं ॥ १ ॥ ऐसा विचारके महोत्सवकरके मातापिताने उपाध्याय के समीप बहत्तर कलाका अभ्यास करनेको रखका ॥ अनायास से सर्वकला थोड़े कालमें पढ़ी छप्रकारका आवश्यकसूत्रादिक श्रावकका आचारभी पढ़ा || यौवन अवस्था पाई ॥ उसके पिताने श्रीकान्ता ९ पद्मा २ लक्ष्मी ३ गंगा ४ पद्मलता ५ तारा ६ रमा ७ पद्मिनी ८ गौरी ९ गांगेया १० रतिः ११ वह महर्द्धिक व्यापारियोंकी कन्याका पाणिग्रहण कराया ॥ रूप
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मौन एका
दशीका
व्याख्यान.
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