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इग्यारह पुस्तक, पूठा, पटरी, ठवनी वगैरहः ज्ञानके योग्यउपकरण चढाए । इसीतरह चारित्रके उपकरण चढ़ाए ॥ | ऐसे विस्तारसे उद्यापनकरके संघपूजा साधर्मी वात्सल्य वगैरह, सात खेबोंमें धनखर्चके आपना मनुष्यजन्म | सफलकिया ॥ एकदा वृद्धअवस्था में सेठ रात्रिमें विचारताभया । मैंने जन्मपर्यन्त श्रावकधर्मपालाहै ॥ मौन एकादशीका तप उद्यापन सहितकिया है | यह संसार असार है || पहले या पीछे अवश्यपरभव जाना है | इस वास्ते इसवक्त में सद्गुरुके योगसे दीक्षालेऊं ॥ तो ठीक होवे ऐसा विचारकरते प्रभातहोगया | उद्यानमें तरणतारण समर्थ चारज्ञानके धारनेवाले गुण सुंदरसूरीआए | उन्होंको वंदना करनेको सबलोगगए ॥ अपना पुत्र और स्त्रियोंके सहित सेठभीगए | जितनेवन्दन करके सबलोग बैठे तब गुरूने देशना प्रारंभकरी ॥ जो भव्य केवलीका कहाहुआ अहिंसालक्षण सत्तरह प्रकारसंयम विनयमूल, क्षमा प्रधान महात्रतरूपसाधुधर्म| पालने से शीघ्र कर्म क्षयः करके मोक्ष जावे है | और जो बारह व्रतात्मक श्रावक धर्मपाले वह परंपरासे मोक्षका | कारण है || थोड़ेकालसेही सर्व दुःखोंका अन्त करनेवाला साधुधर्म शीघ्रमोक्षजानेकेवास्ते सेवना ॥ कहाहै ॥ चारित्ररत्नान्न परं हि रलं, चारित्रवित्तान्न परं हि वित्तम् ।
चारित्रलाभान्न परो हि लाभश्चारित्रयोगान्न परोहि योगः ॥ १ ॥
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