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दीवा० लोगोंने अपने २ घरों में रत्नके दीपकोंसें दीवालीकरी ॥ तबसे लोकमें कार्तिक महीने में दिवालीपर्व वर्तमानहुआत
निवाणव्याख्या० पहले श्रावणमहीने में दिवालीपर्व था जिसरात्रिमें वीरप्रभु मोक्षगये तब सब संघ उद्वेगपाया ॥ संघका मुखकमल
स्वरूप दम्लान होगया ॥ बाद गौतमखामीको केवलज्ञान उत्पन्न होनेसे समस्त संघको आनंद हुआ॥ चौसट इन्द्रः प्रभुका निर्वाण महोत्सव करके प्रभुके शरीरका संस्कार किया। तब इन्द्रादिकदेव दाढ़ावगैरहः लेवे॥ कईकदेव दांतवगैरहः
को लेवे ॥ कईक भस्मग्रहणकरे असंख्यातादेवोने वहांकी भस्मी धूलिः वगैरहः लेनेसे वहां एक सरोवर होगया ॥ दइन्द्रने वहां प्रभुःका चरण स्थापित किया ॥ बाद प्रातःकालमें गौतमखामीके केवलज्ञानका उत्सवकरके सबदेव इ-15
कटे होकर नन्दीश्वरद्वीपमें अट्ठाई महोत्सवःकरके अपने अपने ठिकाने गए ॥ दूसरे दिन सुदर्शनाभगनी शोकदूरकरानेकेलिये नंदिवर्धनराजाको अपनेघर भोजनकराया ॥ तबसे लोकमें भाईबीजपर्वभया ॥ पहले लोगोंने रत्नमई दीपककीएथे बाद सोनेमई रूपमई क्रमसे पांचवेंआरेके प्रभावसे मट्टीमई दीपककरते हैं । ऐसा आर्यसुहस्तिसूरिने संप्रतिराजासे कहा हेराजन् यह दिवालीपर्व सब पर्यों में उत्तम कहाहै । लौकिक और लोकोत्तर यह पर्व माना जावे है। जैसे वृक्षोंमें कल्पवृक्ष देवोमें इन्द्र राजाओमें चक्रवर्ती नक्षत्रोंमें चन्द्रमाः तेजखिओमें सूर्य सर्वधातुओंमें|
॥४९॥ सुवर्ण काष्ठमें चन्दन बनोंमे नन्दनवन प्रधानहै वैसा सब पों में दिवालीपर्व श्रेष्ठ है ॥ दिवाली के दिन श्रीवीरप्रभु मोक्षगयेहैं ॥ और गौतमखामीको केवलज्ञान उत्पन्नभया है । इस कारणसे हे महाराज यह दिवालीपर्व सर्वसिद्धिके देने
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