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दीवा० व्याख्या०
॥ ५१ ॥
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जब उन्हों की ताडना करे तब रोतेहुए घरआकर माता से आपना दुःख कहें ॥ तब माता बोली पढ़ने से क्याप्रयोजनहै | कहा भी है |
पटनाऽपि मर्तव्यं शठेनाऽपि तथैवच । उभयोर्मरणं दृष्ट्वा कण्ठशोषं करोति कः ! ॥ १ ॥ अर्थः- पढ़े जिसकोभी मरना है नहींपढे जिसकोभी मरना है दोनोंका मरणदेखके कौन कण्ठशोष करे | | दोहा - अणभणियां घोडे चढे भणियां मांगे भीख । भूलचूक भणना नहीं यही गुरूकी सीख ॥
पंडितको ओलंभादिया ईर्षासे पुस्तकपाटी वगैरह को जलादिया । और पुत्रोंसे कहा पढनेको जानानहीं ॥ | सेठ वह विचार जानके स्त्री से बोला हे भद्रे मूर्खपुत्रों को कन्या कौन देवेगा और वै व्योपार कैसे करेंगे। इस कारण कहा है।
माता वै पिता शत्रुर्वालो येन न पाठितः । न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥ १ ॥ विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन । खदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥ २ ॥ अर्थः- जिन्होंने अपने पुत्रको नहीं पढाया है उस पुत्रकी माता वैरनी है ॥ पिता शत्रु है वह मुर्खपुत्र पंडितोंकी सभा में नहींशोभे है | जैसे हंसों की सभा में बक नहींशोहै ॥ १ ॥ और विद्वान् और राजा कभी भी नहीं सहश होते हैं ॥ कारण राजा अपने देशमें माना जाता है | परदेशमें कोई जाने नहीं विद्वान् खदेशपरदेश में सत्कार
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ज्ञानपंचमी व्याख्यान.
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