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दीवा० व्याख्या
॥४७॥
वर्तमानचौवीसीके जैसा श्रीमहावीरस्वामीके जैसेपहले तीर्थंकर ॥ पार्श्वनामखामीके जैसे दूसरे तीर्थकर यावत: तीसरे आ.
ऋषभदेवखामीके जैसे चौवीसमे तीर्थकर होंगे अब भाविचक्रवर्ती कहते हैं। दीर्घदंतः१ गूढदन्तः २ शुद्धदन्तः ३ भावा * श्रीचन्द्रः४, श्रीभूतिः ५, श्रीसोमः ६ पद्मः ७ महापद्मः ८ कुसुमः ९, विमलः १०, विमलवाहनः ११, रिष्टः इत्य
चक्रवर्ती परनामा भरतो द्वादशः १२॥ अब वासुदेवोंका नाम कहते हैं ॥ नन्दी १ नन्दमित्रः २ सुन्दरबाहुः ३, महाबाहुः
प्रमुखनाम ६|४, अतिबलः ५ महाबलः ६ बलः ७ द्विपृष्टः ८ त्रिपृष्टः ९॥अब बलदेवके नाम कहते हैं॥जयः १, विजयः, २ भद्र है ३ सुप्रभः ४, सुदर्शनः ५, नन्दः ६, नन्दनः, ७ भीमः ८, संकर्षणः९॥ अब प्रतिवासुदेवके नाम कहते हैं। तिलकः
१ लोहजंघः २ वज्रजंघः ३, केशरी ४ बलिः ५ प्रह्लादः ६ अपराजितः७ भीमः ८ सुग्रीवः९॥ यह त्रेसठ शलाका ६ पुरुषोंमें इकसह पुरुषः तीसरे आरेमें होवेंगे॥ एक तीर्थंकर चौवीसवां १ चक्रीवर्ती बारहवां यह दोपुरुष चौथे आरेमें 8 है होवेंगे। इन दोनोंका चौरासीपूर्वलाखवर्षका आयुःहोगा बाद कल्पवृक्षोंकी उत्पत्ति होगी। मनुष्य युगलधर्मी होजाजायंगे॥पीछेके चौवीसवें तीर्थकर आगेकेपहिलेतीर्थकरइनदोनोंके अठारहकरोडाकरोड सागरका अंतरहोगा॥छ (६)|
आरा युगलियाका जावेगा ॥ उत्सर्पिणी अपसर्पिणी काल इकट्ठा करनेसे २० क्रोडाक्रोड सागरका कालचक्र होवेहै। ला॥४७॥ ऐसे कालचक्रअनन्तगये और इसभरतक्षेत्रमें अनंत जावेंगे। इसप्रकारसे श्रीमहावीरखामी गौतमखामीको भविप्यत कालका सरूप कहके उसदिनकी रात्रिःको अपनानिर्वाणजानके गौतमखामीका मेरेपर जादा स्नेह है इसीसे
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