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अट्ठाहिका
व्या०
कथा
॥२५॥
SASAROSHASTROLOROSESS
तसा जीवोंसे वैसा निर्वाहनहीं हुवेहै । इसलिये धान्यादिखाना युक्तनहींहै बहुतपापहोनेसे ॥ तव उन आद्रकुमार मिथ्याधर्मनिष्ठ तापसोंने मारनेके लिये एक बड़ा हाथीको बांधाहै ॥ जहां सांकलोंसे बंधा हुआ वह हाथी था उसमार्गसे दयाके निधान वह मुनिः गये तब हाथी पांचसै मुनिसहित बहुत लोग नमस्कारकरेहै जिनोंको ऐसे उनमुनिको देखके वह लघुकर्महोनेसे विचारता भया में भी इनमुनिःको नमस्कारकरूं जो बंधानहीं होतो |मैं तो बंधाहुआहूं क्याकरूं ॥ ऐसे विचारतेहुए हाथीकी सांकलां उसमहामुनिःके दर्शनमे जल्दीटूटगई ॥ ६ बाद वह हाथी बंधनरहितहुआ उसमहामुनिःको नमस्कार करनेको जल्दी आया ॥ तवलोक मुनिःको मारा
मारा ऐसा कहते हुए भाग गये ॥ मुनिःतो वाहीं खड़े रहे ॥ हाथी भी कुंभस्थलको नमाके मुनिःको नमस्कार किया ॥ सूड प्रसारणकरके मुनिःके चौँको स्पर्शके परमसुखप्राप्तहुआ बाद वह हाथी उठके भक्तिःसे मुनिःको | देखताहुआ व्याकुलतारहित भयाऐसा अटवीमें प्रवेशकरगया तब अतिअद्भुत मुनिःका प्रभावदेखके बहुत है क्रोधकरके तापस आर्द्रकुमार के पासमें आये ॥ तब आर्द्रकुमरमुनिःने उनतापसोंको प्रतिबोधे बाद तापस
वहांसे भेजे हुये भी महावीरस्वामीके समवशरणमें जाके दीक्षालिया बाद सेणिकराजा भी हाथीका छूटना और ताप-P॥२५॥ सोंका प्रतिवोध सुनके अभयकुमारःसहित आया ॥ महामुनिको भक्तिसे वंदनाकर्ताहुआ, राजाको धर्मलाभरूप 3 आशीर्वाद दिया ॥ बाद शुद्ध भूतलपर बैठाहुआ मुनिको राजाने पूछा हे भगवन् हाथीकी सांकलों टूटी इससे |
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