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किं भविस्सइ ! इइ चन्द्र गुत्तस्स रायस्स वयणं सुच्चा भद्दबाहुगणहरो युगप्पहाणो भवोदहि तारगो चन्दगुत्तस्स संघसमक्खं भणइ चन्दगुत्ता सुमिणानुसारेण अत्थं कहेमि तंजहा
अर्थः-उसकाल उससमयमें पाडलिपुरनामका नगरथा ॥ उसका वर्णन चंपाके सदृश जानना ॥ उस पाड-15 लिपुरनगरमें पाडलनामका बगीचा होताभया और चन्द्रगुप्तनामका राजाथा ॥ श्रावकपना पालताथा ॥
साधुओंकी सेवा करनेवाला जीवाजीवादिपदार्थों का जाननेवाला यावत हाडहाड़के अंदरकी मीजीप्रवचनके ६ रागसे रंगीभई ऐसा, अन्यदा प्रस्तावमें पक्षीके दिन पोशह किया रात्रिमें सोता भया सोलह (१६) खन्ना देखा|
और जगा विचार उत्पन्न हुआ कि खप्नोंका क्या फलहोगा बादमें सूर्योदयहुआ ॥ पोसहपारा इसकाल इस समयमें श्रीसंभूतविजयआचार्यके पदमें विराजमान श्रीभद्रबाहुखामी गणधर युगप्रधान पांचसै (५००) साधुओंके परिवारसहित ग्रामानुग्राम विहार करतेहुये पाडलिपुर नाम नगरका पाडलवनसण्डउद्यानमें समोसरे । चन्दगुप्त राजा कौणिकाजाके जैसा ऋद्धिका विस्तारकरके बांदनेको आया पांचप्रकारकाअभिगमन साचवके मन, वचन, कायाका, एकत्वकरके आचार्यको वन्दना किया ॥ और शुद्धपृथ्वीपर बैठा आचार्यने देशना दिया सुनके बहुत हर्षित हुआ और सोलह (१६) खप्नोंका अर्थ पूछा हे भगवन् आजरात्रिमें धर्मका विचार करता हुआ मैं सोता पश्चिमरात्रिमें सोलह ( १६ ) खनादेखा पहेलेखनमें कल्पवृक्षकीशाखा टूटी ॥१ दूसरे
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