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दीवा० व्याख्या०
॥ ४५ ॥
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संघ, ३ धर्म ४ पूर्वान्ह में विच्छेद होगा || विमलवाहनराजा सुमुखमंत्रीराज्यनीतिधर्म मध्यान्हमें विच्छेद | होगा | अग्निः संध्यासमय विच्छेद होगा || पांचवे आरेके अंत में दुप्रसहसूरि फल्गुश्री साध्वी नागिलश्रावकः सत्य | श्रीश्राविका ये चतुर्विध संघ होगा || पांचवे आरेमें धर्म प्रवर्तेगा | इसकहने कर पांचवें आरेमें धर्म नहीं है। ऐसा जो कहेगा उसको संघसे बहिर करना । इस प्रकार से इक्कीसहजार वर्षप्रमाणे पांचवां आरा होगा ॥ बाद इतनेही | प्रमाणका छट्टाआरा होगा । उसका किंचित्स्वरूप कहते हैं ॥ धर्मतत्वका नाश होजायगा । हाहाकार होगा लोग पशुके जैसा पितापुत्रीकी व्यवस्थारहित होगा | बहुत धूली सहित अतिकठोर अनिष्ट हवा चलेगा ।। दिशाओं में धूम हो जायगा ॥ चन्द्रमासें बहुतशीत पडेगा ॥ सूर्य बहुत तपेगा || अत्यन्त शीतोष्ण से व्याप्तलोग दुःखपावेंगे ॥ भष्म १ | पाषाण २ अनिका कणा ३ खार ४ विष ५ मल ६ बीजली ७ इन्होंके सात मेघवर्षेगा ॥ एकएक मेघकी सातसात | दिनतक वर्षा होगी | जिससे कास, खास १ शूल, कोढ़ १ जलोदर, ज्वर माथेका दुःखना इत्यादि मनुष्यों के महारोग होगा | अङ्गारसदृशपृथ्वी होगी ॥ नदी, पर्वत गर्ता वगैरह जलसे बरोबर होवेंगे ॥ तिर्यञ्च जलचारी थलचारी दुःख से रहेंगे ॥ क्षेत्रवन, आराम, लता, वृक्ष, घास क्षयहोजायगा ॥ वैताढ्य पर्वत ऋषभकूट, गंगासिंधुनदीको छोडके सर्व नष्ट होवेंगे ॥ भरतकीभूमि बहुत धूलिः जिसमें अंगारभूत भस्मभूत होगी । एक हाथके शरीरवाले कठोर अंग दुष्टवर्ण कठोरवचन रोग से पीडित क्रोधी चीपडी नासिका निर्लज्ज वस्त्ररहित मनुष्य और स्त्रियां होवेंगे ॥ मनुष्योंका
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पंचम षष्ठ आरेका स्वरूप
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