________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| (१४) पूर्वधारी दशवैकालिकसूत्रकर्ता मनकपिता श्रीसय्यम्भवसूरि होगा | उन्होके पट्टमें चतुर्दश (१४ ) पूर्वधारी यशोभद्रसूरि होगा । उन्हों के संभूतिविजय १ भद्रबाहु २ नामके दो शिष्य चतुर्दशपूर्वधरहोगा ॥ बाद मेरे निर्वाणसे एकसौसत्तर (१७० ) वर्षजानेसे अनेकशास्त्रका करनेवाला भद्रबाहुस्वर्गजावेगा ॥ बाद मेरे निर्वाणसे दो सैपन्द्रह ( २१५ ) वर्ष जानेसे चौदह पूर्वधारी संभूत्विजयकाशिष्य श्रीथूलभद्र देवलोकजावेगा ॥ तब पहलासंघयन वज्रऋषभनाराच नामका विच्छेदहोगा | और सूत्रसे चार (४) पूर्व ए ऊपरका यानी ग्यारहवां (११) बारहवा ( १२ ) तेरहवां (१३) चौदहवां ( १४ ) ये चारपूर्व महाप्राणायामध्यानविच्छेद होगा ॥ मेरे निर्वाण से (२२२) उज्जैनीनगरी में संप्रतिनामकाराजा होगा वह राजा आर्यसुहस्तिसूरिः के उपदेश से जातिः स्मरण| ज्ञान पायके जैनधर्म अंगीकारकरेगा अपने भुजाकेबलसे तीनखंडकाखामी होगा ॥ दानी, न्यायी, धर्मकाजाननेवाला, पराक्रमी होगा और जिनमन्दिरोंकरके पृथ्वीशोभितकरेगा | और वह राजा अनार्यदेशमें लोगोंके उपकारकेलिये ॥ | सम्यक्त्वधारी जीवाजीवादिनवतत्व के जाननेवाले ऐसे लोगों को भेजके अनार्योंको धर्मका उपदेशकरावेगा ॥ बाद गीतार्थसाधुओं को म्लेच्छोंके देशों में विहारकरावेगा । इसप्रकार से धर्मकी सर्व देशो में प्रवृत्तिः करावेगा । ऐसा दृढ धर्मी संप्रति राजा अनुक्रमसे धर्म आराधके स्वर्ग जावेगा | बाद मेरे निर्वाणसे चारसैसत्तर ( ४७० ) वर्ष जाने से | उज्जैनी में विक्रमादित्यराजा होगा ॥ श्रीसिद्धसेनदिवाकरका उपदेश सुनके सम्यक्त्व धारण करेगा ॥ जिनशासनकी
For Private and Personal Use Only