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दीपमालिखप्नमें अकालमें सूर्य अस्तहोगया ॥ २ तीसरेखनमें चन्द्रमामें सौ (१००) छिद्र देखे ३ चौथेखनमें भूत चंद्रगुप्तके का व्या०६नांचते भये देखे ४ पांचमें स्वप्नेमें बारह (१२) फणवाला सर्पदेखा ५ छटे स्वप्नमें विमानआके गिरगया ६ दुस्वप्नोका
है सातवें स्वप्नमें अपवित्रस्थानमें कमल ऊगा ॥ ७ आठवें स्वप्नमें खद्योत प्रकाश करे ९ नवें स्वप्नेमें बड़ासरोवर । अर्थ
सूखा हुआ उसके दक्षिण दिशामें थोड़ा पानी ९ दशवें स्वप्नमें कुत्ता सोनेके थालमें खीर खाता हुआदेखा १०॥ ग्यारहवे स्वप्नमें हाथीपर बेठा हुआ वानरा देखा ११ बारहवें स्वप्नेमें समुद्रमर्यादाछोडता हुआ देखा १२॥ | तेरहवें स्वमें रथबड़ाहै छोटे बैलजोतेहुए है १३ चौदहवें स्वप्नमें बहुतकीमतका रत्न कमतेजवालादेखा ॥ १४ पन्नरहवें स्वप्नेमें राजकुमर वृषभ परचढाहुआ देखा १५ सौलहवें स्वप्नेमें हाथीके बच्चे परस्पर युद्ध करतेहुए 2 देखे ॥ १६ हे भगवन् इन स्वप्नोंका क्या फल होगा ऐसा चन्द्रगुप्त राजाकाबचनसुनके भद्रबाहुस्वामी गण-18 धर, चन्द्रगुप्त राजाको, संघसमक्ष स्वप्नोंका फल कहा ॥ हे चन्द्रगुप्त स्वप्नोंके अनुसारसे अर्थकहताहूं सोलह (१६) स्वप्नोमें पहला स्वप्न कल्पवृक्षकी शाखा ढूंटीभई देखी उसका फल दुःषम कालमें राजा कोई दीक्षा | लेवेगा नहीं ॥१ दूसरे स्वप्नमें सूर्य अकालमें अस्त हुआ देखा उसका फल केवलज्ञान विच्छेद होगया ॥२ तीसरे र स्वप्नमें चन्द्रमें सौछिद्र देखा ॥ उससे धर्ममें अनेक मार्ग हो जायगा ॥३ चौथे स्वप्नमें भूत नांचते हुए देखे उससे है कुबुद्धिलोग भूतके जैसे नांचेंगे ४ ॥ पांचवे स्वप्नेमें बारह (१२) फणका सर्प देखा ॥ इससे बारह (१२)
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